Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 6
________________ प्रकाशकीय 'सा विद्या या विमुक्तये' अर्थात् विद्या वही है जो विमुक्ति प्रदान करे। दैहिक जीवन मूल्यों में उदरपूर्ति व्यक्ति की प्रथम आवश्यकता है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता है । किन्तु इसे ही शिक्षा का 'अथ एवं इति' नहीं बनाया जा सकता, क्योंकि यह कार्य शिक्षा के अभाव में भी सम्भव है। यदि उदरपूर्ति ही जीवन का एकमात्र लक्ष्य हो तो फिर मनुष्य पशु से भिन्न नहीं होगा। जैन मान्यतानुसार उस शिक्षा या ज्ञान का कोई अर्थ नहीं है जो हमें चारित्रिक शुद्धि या आचारशुद्धि की दिशा में गतिशील न करता हो । शिक्षा से व्यक्ति अज्ञान का नाश करता है तथा संक्लेश को प्राप्त नहीं होता है । जिस प्रकार धागे से युक्त सूई गिर जाने पर भी विनष्ट नहीं होती है अर्थात् खोजी जा सकती है, उसी प्रकार श्रुतसम्पन्न जीव संसार में विनष्ट नहीं होता है। दूसरे शब्दों में जैन परम्परा में उस शिक्षा को निरर्थक ही माना गया है जो व्यक्ति के चारित्रिक विकास या व्यक्तित्व विकास करने में समर्थ नहीं है। जो शिक्षा मनुष्य को पाशविक वासनाओं से ऊपर नहीं उठा सके, वह वास्तविक शिक्षा नहीं है । प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने जैन एवं बौद्ध परम्पराओं में मान्य शिक्षा-पद्धत्तियों का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करते हुये वर्तमान शिक्षा में आध्यात्मिक एवं नैतिक मूल्यों की शिक्षा की महती आवश्यकता पर बल दिया है, अतः उन्हें मेरा साधुवाद | सुन्दर अक्षर-सज्जा के लिये सरिता कम्प्यूटर्स एवं सत्वर मुद्रण हेतु वर्द्धमाण मुद्रणालय को धन्यवाद देता हूँ । दिनांक - ११.०४.२००३ शाजापुर Jain Education International For Private & Personal Use Only सागरमल जैन सचिव पार्श्वनाथ विद्यापीठ www.jainelibrary.org

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