Book Title: Jain Yog Granth Chatushtay Author(s): Haribhadrasuri, Chhaganlal Shastri Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar View full book textPage 6
________________ →→→→→ समर्पण जिनके जीवन से शौर्य की दीप्तिमयो आभा सदा छिटकती रही, कर्म-शूर तथा धर्म-शूर को द्विपदी का अमर घोष जिनके जीवन में अनवरत गुञ्जित रहा, जिनके कर्म - समवाय से करुणा का अमल, धवल निर्झर सदा प्रवहणशील रहा, निःस्पृहता, तितिक्षा, सेवा, पर- दुःख - कातरता जैसे उत्तमोत्तम मानवीय गुणों द्वारा जिनका जीवन सुसज्ज एवं शोभित रहा, ॐ जिनका योगविभूति भूषित, प्रभविष्णु व्यक्तित्व सब के लिए दिव्य प्रेरणा-स्रोत था, जो अपनी वदान्यता द्वारा जन जन को उपकृत करते रहे, जिनसे मैंने अपनी जीवन-यात्रा में, धर्म यात्रा में सदा पाया ही पाया : वात्सल्य, स्नेह, प्रेरणा, करुणा तथा अनुग्रह का अपरिसीम पुण्य-संभार, उन अविस्मरणीय, अभिवन्दनीय, स्तवनीय परम श्रद्धास्पद पितृचरण स्व० मुनि श्री मांगीलालजी महाराज की पावन स्मृति में Jain Education International - जैन साध्वी उमराव कुंवर 'अर्चना' 4 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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