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३८ जैन योग
लिए यह नियम लागू होता है । हर रुग्ण व्यक्ति को ध्यान देना चाहिए कि शरीर में जो व्याधि उभरी है, उसके पीछे कौन-सी आधि खड़ी है | यदि हम अपनी शारीरिक व्याधियों के लिए मानसिक विकृतियों पर ध्यान देना प्रारंभ करें तो व्याधि के सही निदान तक पहुंच सकते हैं । हमारा विश्वास है कि डॉक्टरों से निदान करवा लिया, एक्सरे करवा लिया, फोटो ले लिए, वैज्ञानिक युग के जितने निदान के उपकरण हैं उनका उपयोग कर लिया, टैस्ट करा लिया, वैद्यों को नब्ज दिखला दी, समझते हैं निदान हो गया । इतना करने पर भी पूरा निदान नहीं होता । उसकी एक बड़ी आधार - भित्ति छूट जाती है । वह है मानसिक विकृतियों की खोज । गहरे में उतरकर हम अपनी मानसिक विकृतियों तक नहीं पहुंचते, उन्हें नहीं टटोलते, उनका प्रतिलेखन नहीं करते, तब तक व्याधि का सही निदान हमारे हाथ नहीं लगता । मनोविकार का हेतु : मन की मलिनता
हम मानसिक विकृतियों पर ध्यान दें । आज के युग की सबसे बड़ी समस्या है मानसिक विकृति । हो सकता है कि अतीत में भी कभी इतनी मानसिक विकृति हुई हो, किंतु इसकी कम संभावना है । आज मानसिक विकृति या मानसिक रुग्णता के लिए जितनी संभावना है उतनी शायद पहले नहीं थी । आज का युग उसके लिए जितना उर्वर है इतना पहले का नहीं था | इस मानसिक व्यथा या पीड़ा के लिए हम गहरे में उतरकर ध्यान दें और सोचें कि यह क्यों होती है ? मनोविकार क्यों होता है ? हम कारण की खोज करें । कारण की खोज में निकलें तो उसका पता लगना मुश्किल नहीं है । जिन मनुष्यों ने कारण को खोजा है उन्हें वह उपलब्ध हुआ है । कार्य के साथ कारण का संबंध है । कार्य दृष्ट होता है और कारण अदृष्ट | कार्य सामने होता है और कारण छिपा रहता है । मनुष्य ने किसी भी छिपी हुई वस्तु को अज्ञात नहीं रहने दिया, उसे ज्ञात कर लिया । हम उसे ज्ञात कर सकते हैं | मनोविकार का हेतु खोजा गया और खोजने पर पता चला कि उसका हेतु है मन की मलिनता । प्रतिदिन मन पर मैल जमता है और उस पर रजें चिपट जाती हैं । मैल पसीना है, रजें चिपटी हैं तब वह गाढ़ा बन जाता है । वह हमारे शरीर के छिद्रों को रोक लेता है, रोम कूपों को बंद
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