________________
पद्धति और उपलब्धि
१६९
२२. क्षीरात्रवी- १ हाथ के स्पर्श मात्र से विरस भोजन को दूध,
२३. मध्यास्रवी
मधु, घी और अमृत की भांति सरस करने की
क्षमता ।
-
२४. सर्पिरास्रवी २. दूध, मधु, घी और अमृत की भांति मन को २५. अमृतास्रवी आह्लादित और शरीर को रोमांचित करने की वाचिक क्षमता |
२६. अक्षीणमहानस - हाथ के स्पर्श मात्र से भोजन को अखूट करने की क्षमता ।
२७. मनोबली - क्षणभर में विपुल श्रुत और अर्थ के चिंतन की मानसिक
क्षमता ।
२८. बाग्बली - ऊंचे स्वर से सतत श्रुत का उच्चारण करने पर भी अश्रांत रहने की क्षमता ।
२९. कायबली - महीनों तक एक ही आसन में बैठे या खड़े रहने की क्षमता ।
३०. वैक्रिय - इसके अनेक प्रकार हैं
(१) अणिमा - शरीर को छोटा बनाने की क्षमता ।
(२) महिमा - शरीर को बड़ा बनाने की क्षमता |
(३) लघिमा - शरीर को वायु से भी हल्का बनाने की क्षमता । (४) गरिमा - शरीर को भारी बनाने की क्षमता |
(५) अप्रतिघात - ठोस पदार्थों में भी अस्खलित गति करने की क्षमता ।
(६) कामरूपित्व - एक साथ अनेक रूपों के निर्माण की क्षमता । ३१. आहारक - एक पुतले का निर्माण कर यथेष्ट स्थान पर भेजने की
क्षमता ।
३२. तेजस् - शारीरिक विद्युत के द्वारा अनुग्रह और विग्रह करने की क्षमता । यह हठयोग और तंत्रशास्त्र में प्रसिद्ध कुंडलिनी शक्ति है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org