Book Title: Jain Vidya 18
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 10
________________ जैनविद्या 18 अप्रेल 1996 1 आचार्य समन्तभद्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व - डॉ. गुलाबचन्द्र जैन सामान्य परिचय जैनाचार्यों में मूर्धन्य तार्किक विद्वान समन्तभद्र को कौन नहीं जानता ? आप सर्वतोमुखी प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति थे । आपने अपनी रचना रत्नकरण्ड श्रावकाचार में प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग एवं द्रव्यानुयोग- इन चारों अनुयोगों के लक्षण लिखे हैं जिससे ज्ञात होता है कि आप चारों अनुयोगों के निष्णात् विद्वान थे । क्योंकि वस्तु का लक्षण लिखनेवाला उसका पूर्ण ज्ञाता होता है। 1 स्वामीजी का विशेष परिचय पाने के लिए पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है । आचार्य जिनसेन के महापुराण की एक कारिका निम्न प्रकार है जो आचार्य समन्तभद्र को अनेक विशेषणों से सम्पन्न सिद्ध करती है कवीनां गमकानां च वादीनां वाग्मिनामपि । यशः समन्तभद्रीयं मूर्ध्नि चूडामणीयते ॥1.44॥ समन्तभद्र की कीर्ति कवियों, गमकों, वादियों तथा वाग्मियों के मस्तक पर चूड़ामणि सदृश शोभा प्राप्त होती है। इस उक्ति का स्पष्टीकरण इस प्रकार किया है कविर्नूतन सन्दर्भों गमको कृति भेदकः । वादी विजयाग्वृत्तिर्वाग्मी जनरंजकः ॥ अर्थात् नवीनतापूर्ण रचना करने से कवि हैं, शास्त्रों के मर्म को स्पष्ट करनेवाला होने से गमक हैं,

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