Book Title: Jain Vidya 18
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 43
________________ जैनविद्या 18 'प्रकाशदीप' के समान प्रेरणास्रोत बना रहेगा। जो भद्र पुरुष हैं और यथार्थ में अपना आत्म-कल्याण चाहते हैं उन्हें स्वामी समंतभद्र (युक्त्यनुशासन) के निम्न श्लोक को हृदयंगम करना अपेक्षित है, जिसमें आत्मशुद्धिकरण की प्रक्रिया निहित है - दया दमत्याग समाधिनिष्ठं नयप्रमाण-प्रकृताञ्जसार्थम् । अधृष्यमन्यै रखिलैः प्रवादैर्जिन त्वदीर्य मतमद्वितीयम् ॥6॥ उक्त पद्य में भक्तियोग, ज्ञानयोग और कर्मयोग इन तीनों का समावेश होकर जैन-शासन के सिद्धान्त और मार्ग को सूत्ररूप में समझा दिया गया है। ओ. पी. मिल्स अमलाई (म.प्र.)-484117

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