Book Title: Jain Vidya 18
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 57
________________ जैनविद्या 18 परिशिष्ट 'स' कवि काव्यनाम गर्भ चक्रवृत्तम् गत्वैकस्तुतमेव वासमधुना तं येच्युतं स्वीशते, यन्नत्यति सुशर्मपूर्णमधिकां शान्तिं वजित्वाध्वना । यद्भक्तया शमिताकृशाघमरुजं तिष्ठेजनः स्वालये, ये सद्भोगकदायतीव यजते ते मे जिनाः सुश्रिये ॥११६॥ (स्तुतिविद्या) - ये/ स्वा BE plal AWARDAml रु घ शा क ता > | मि श |क्त्या - | ANDE FERRTHe - - संकेत सूची - प्र. - प्रथम चरण ‘गत्वैक ---- स्वीशते' द्वि. - द्वितीय चरण ‘यन्नत्यैति --- बृजित्वाध्वना' तृ. - तृतीय चरण यद्भक्त्या--- स्वालये' प्रथम वलय के अक्षर 'ये' (तृ.) से चतुर्थ चरण 'ये सद्भोग कदायतीव--- शुरु होता है। चौथे वलय के 'जि' से लेकर वलयाकार शब्दों में 'जिनस्तुतिशतं' ग्रंथ का नाम ध्वनित होता है। सातवें वलय के 'शा' से लेकर वलयाकार शब्दों में शान्तिवर्मकृत' ग्रंथ कर्मा स्वामी समन्तभद्राचार्य का नाम ध्वनित होता है।

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