Book Title: Jain Vidya 18
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 88
________________ जैनविद्या 18 79 (5) आहारवारणा - आहार-पानी आदि न देना या समय पर न देना। सत्याणुव्रत के अतिचारों का विवरण निम्न प्रकार है - (1) झूठा उपदेश देना। (2) स्त्री-पुरुषों की गोपनीयता को भंग करना। (3) शारीरिक चेष्टा द्वारा अभिप्राय जानकर ईर्ष्या से दूसरे की बात को प्रकट करना - उजागर करना। (4) झूठे लेख लिखना। (5) किसी की धरोहर का हरण करना। अचौर्यव्रत के अतिचार निम्नांकित हैं - (1) चोरी की प्ररेणा देना। (2) चोरी का माल लेना। (3) कर आदि को छिपाना, भुगतान न करना अथवा कम करना। (4) खाद्य-अखाद्य पदार्थों में मिलावट करना। (5) मापने-तौलने में कम करना अथवा आधिक्य करना। ब्रह्मचर्य व्रत के अतिचार उल्लेख निम्नांकित द्रष्टव्य हैं - (1) दूसरे का विवाह कराना। (2) काम-सेवन के लिए निश्चित अंगों से भिन्न अंगों द्वारा काम-सेवन करना। (3) शारीरिक तथा वाचनिक प्रवृत्ति करना। (4) अपनी पत्नी के भोगने में भी अत्यन्त आसक्ति रखना। (5) व्यभिचारिणी स्त्रियों से सम्बन्ध रखना। अपरिग्रहव्रत के अतिचार निम्नांकित हैं(1) अतिवाहन। (2) अतिसंग्रह। (3) अतिविस्मय। (4) अतिलोभ। (5) अतिभारवहन (अधिक लोभ के अभिप्राय से)। अणुव्रतों की भाँति गुणव्रतों में भी पाँच-पाँच अतिचारों की चर्चा की गयी है जो निम्नांकित हैं - दिग्वत व्रत के अतिचार निम्नलिखित हैं:(1) अज्ञान अथवा प्रमाद से ऊर्ध्व दिशा की मर्यादा का उल्लंघन करना। (2) अज्ञान अथवा प्रमाद से अधोदिशा की मर्यादा का उल्लंघन करना।

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