Book Title: Jain Vidya 18
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 27
________________ 18 जैनविद्या 18 मद्यमांसमधुत्यागैः सहाणुव्रतपंचकम् । अष्टौ मूलगुणानाहुर्गृहीणां श्रमणोत्तमाः ।।66॥ - मद्यत्याग, मांसत्याग, मधु (शहद) - त्याग के साथ अहिंसाणुव्रत, सत्याणुव्रत, अचौर्याणुव्रत, बह्मचर्याणुव्रत और परिग्रह परिमाणाणुव्रतपालन करना, ये श्रावक के आठ मूल गुण हैं। चतुर्थ परिच्छेद में स्वामीजी ने दिग्वत, अनर्थदण्ड त्यागवत, भोगोपभोग परिमाण - इन तीन गुणव्रतों का और इनके अतिचारों का विस्तार से वर्णन किया है। महाव्रत का लक्षण - पञ्चानां पापानां हिंसादीनां मनोवचः कायैः । कृतकारितानुमोदैस्त्यागस्तु महाव्रतं महताम् ॥720 - हिंसादिक पांचों पापों का मन, वचन, काय से तथा कृत-कारित और अनुमोदना से त्याग करना छठे गुणस्थान से लेकर ऊपर के सभी गुणस्थानवर्ती साधुओं के महाव्रत कहलाते हैं। पंचम परिच्छेद में सामायिक, प्रोषधोपवास, भोगोपभोग-परिमाण और अतिथिसंविभाग-ऐसे चार. शिक्षाव्रतों का वर्णन; दान का लक्षण, नवधा भक्ति तथा पूजा और पूजा के फल का वर्णन किया गया है। ___ छठे परिच्छेद में सल्लेखना (समाधिमरण) तथा उसके अतिचारों का वर्णन किया गया है। इसी के साथ मोक्ष का लक्षण भी दिया है - जन्मजरामयमरणैः-शौकैर्दुःखर्भयैश्च परिमुक्तम्। निर्वाणं शुद्धसुखं, निःश्रेयसमिष्यते नित्यम् ॥131॥ - जन्म, बुढ़ापा, रोग, मृत्यु, शोक, दुःख और भय से रहित अविनश्वर और सच्चे सुखसहित, सर्वकर्मरहित, आत्मा की विशुद्धि को मोक्ष कहते हैं। सप्तम परिच्छेद में श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं का वर्णन है - दर्शनप्रतिमा, व्रतप्रतिमा, सामायिक प्रतिमा, प्रोषधोपवास, सचित्तत्याग, रात्रिभुक्ति-त्याग, ब्रह्मचर्य, आरम्भत्याग, परिग्रहत्याग, अनुमतित्याग और उद्दिष्टत्याग - इस प्रकार सात परिच्छेदों में 150 श्लोकयुक्त रत्नकरण्ड श्रावकाचार स्वामी समन्तभद्र की उत्कृष्ट कृति है। गोधों का चौक हल्दियों का रास्ता जौहरी बाज़ार, जयपुर-302003 1. 2. 3. स्तुतिविद्या की प्रस्तावना, लेखक श्री जुगलकिशोर मुख्तार। श्री जुगलकिशोर मुख्तार को दिगम्बर जैन पंचायती मंदिर देहली के पुराने, जीर्ण-शीर्ण गुटके से प्राप्त हुआ है। अनुवादक पं. श्री पन्नालाल जी जैन साहित्याचार्य 'वसन्त' द्वारा प्राप्त ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118