Book Title: Jain Tattva Digdarshan
Author(s): Yashovijay Upadhyay Jain Granthamala Bhavnagar
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 10
________________ (6) होकर प्रशंसा करते हैं कि जैनाचार्य निष्पक्षपाती और यथार्थ लेखक थे। इस मशंसा का कारण यह है कि जो निःस्पृहता से काम किया जाता है वही सर्वोत्तम होता है; यह बात सब को विदित ही है । जो जैन महामुनि आज भी अपना आचार, विचार, देश, क्षेत्र, काल, भाव के अनुसार रख सके हैं उसका मूल कारण जिनदेव का मोक्षपरक उपदेशही है। सभी जिनदेव धर्मशूर क्षत्रियकुलही में उत्पन्न हुए हैं क्योंकि क्षत्रिय सब कहीं शूरता (वीरता) करते हैं; कारण यह है कि उनका वह वीर्य, उसी प्रकार का है । इसलिये जैनधर्म में क्षत्रियकुल सर्वोत्तम बताया गया है । प्रायः करके जैनधर्म के पालक और उपदेशक बहुत से क्षत्रिय ही थे । क्षत्रिय केवल अपने पराक्रम के सिवाय दूसरे की कभी दरकार नहीं रखते हैं। शूरता के विना देश की उन्नति और जाति की उन्नति, तथा धर्मोन्नति आदि कोई भी कार्य नही हो सकता, क्योंकि शास्त्रकारों ने स्वयं कहा है कि "जे कम्मे सूरा ते बम्मे मूग” अथात् जो कर्म में शूर हैं वे ही धर्म में भी गुर है । किन्तु धर्माधिकार में ब्राह्मण, वैश्य, :- स्थानाङगसूत्र के पत्र २७६ में लिखा हैचत्तारि सूरा पण्णता । तं जहा-खन्तिसुरे, तबसूरे, दाणसूरे, जुडसूरे। अर्थात् शूर चार प्रकार के होते है ? क्षमाशूर, २ तपशूर, ३ दानशूर तथा ४ युद्धशूर ।

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