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है उसका अनन्त व्यवहार कसे होसकता हुए। इसका उत्तर यह है कि-ज्ञेय पदार्थ के अनन्त, होने से तद्विषयक ज्ञान को भी अनन्त मानने में किसी प्रकार की हानि नहीं होसकती । एवंरीत्या दर्शन, चारित्र और चीयाँदि में भी समझलेना । जैनशास्त्रकार मोक्ष में संसारी सुख से विलक्षण सुख मानते हैं । जिस तरह कोई पुरुष-आधि, व्याधि, उपाधि ग्रस्त होकर दुःख का अनुभव करता है और उससे मुक्त होनेपर सुख का अनुभव करता है। उसीतरह आत्मा के ऊपर जहाँतक कर्म का पर्दा पड़ा हुआ है वहॉतक सांसारिक सुख और दुःख का अनुभव करता है और कर्म का पर्दा दूर होनेपर वास्तविक, निर्वाध, अनुपमेय, स्वसंवेद्य सुख का अनुभव करता है । साङ्ख्यदर्शनकार प्रकृति के वियोग में मोक्ष मानते हैं और नैयायिकों ने दुःखध्वंसरूपही मोक्ष माना है, तथा वेदान्ती [अध्यास से मुक्त ] ब्रह्मही को मुक्ति का स्वरूप कहते हैं, एवं बौद्ध पञ्चस्कन्धरूप दुःख, रागादिगण और क्षणिकवासनास्वरूप मार्ग के निरोध को मोक्ष मानते हैं। ___ मुक्ति पदार्थ को आस्तिकमात्र मानते हैं, परश्च जैनेतर मतों में एक संप्रदाय में भी अनेक स्वरूप मुक्ति के माने गये हैं; किन्तु जैनमत में अनेक संप्रदाय रहनेपर भी