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नाम लिखा हुआ है । लेश्या के कारण, बन्ध जुदे २ प्रकार के होते हैं । इसी कारण से जगत् में विचित्र प्रकार के जीव दिखलाई पड़ते हैं । अत एव अध्यवसाय की शुद्धि के लिये वीतराग का पूजन अत्यावश्यक है ।
जैनमत में रागद्वेपवाले को ईश्वर नहीं मानते ।
जगदादिरूप कार्य की उत्पत्ति में अवान्तर प्रलय माननेवाले नैयायिक तीन कारण मानते हैं । १ समवायी जैसे परमाणु, २ असमवायी जैसे द्वयणुकादिसंयोग और तीसरा निमित्तकारण ईश्वर, अदृष्ट और कालादि को मानते
अतिरौद्रः सदा क्रोधी मत्सरी धर्मवर्जितः । निर्दयो वैरसंयुक्तः कृष्णलेश्याऽधिको नरः ॥ १ ॥ अलसो मन्दबुद्धिश्व स्त्रीलुब्धः परवञ्चकः । कातरश्च सदा मानी नीललेश्याऽधिको भवेत् ॥ २ ॥ शोकाकुलः सदा रुष्टः परनिन्दाऽऽत्मशंसकः । संग्रामे प्रार्थते मृत्युं कापोतक उदाहृतः ॥ ३ ॥ विद्यावान् करुणायुक्तः कार्याकार्यविचारकः। लाभालाभे सदा प्रीतः पीनलेग्याऽधिको नरः ॥ ४॥ क्षमावश्च सदा त्यागी देवार्चनरतोद्यमी । शुचिर्भूतसदानन्दः पद्मलेश्याऽधिको भवेत् ॥ ६॥ रागद्वेपविनिर्मुक्तः शोकनिन्दाविवर्जितः ।
परमात्मत्वसंपन्नः शुक्ललेदयो भवेन्नरः ॥ ६ ॥