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प्राणातिपातचिरमण व्रत १, अर्थात् प्राणातिपात ( जीवहिंसन ) से स्थूलरीत्या विराम ( निवृत्ति ) होना । इसी रीति से मृषावाद ( मिथ्याभाषण), अदत्तादान [ नही दिये हुए पदार्थों का लेना ], मैथुन ( परस्त्रीसंभोग ) और परिग्रह [ विशेष वस्तुओं का संग्रह ] से स्थूलरीत्या निवृत्ति होने को, क्रम से मृषावादविरमण व्रत २, अदत्तादानविरमण व्रत ३, मैथुनविरमण व्रत ४ और परिग्रहविरमण व्रत ५ कहते हैं ।
इन पॉच मूलव्रतों की रक्षा करने के लिये तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत माने गये हैं ।
उन गुणत्रतों और शिक्षात्रतों के नाम क्रम से ये हैं:दि १ [ अपने स्वार्थ के लिये दशो दिशाओं में जाने आने के किये हुए नियम की सीमा को उल्लङ्घन नहीं करना ]; भोगोपभोगनियम २ [ भोग जो एक बार उपयोग में लाया जा सके, जैसे भोजन; उपभोग जो वारंवार काम में लाया जाय, जैसे वस्त्रादि । इन दोनों का नियम ]; अनर्थदण्डनिषेध ३ [ किसी भी निरर्थक क्रिया करने का निषेध ] ये गुणवत हैं । और सामायिक १ [ रागद्वेष रहित हो, सब जीवों पर समभाव होकर ४८ मिनट पर्यन्त एकान्त में बैठकर आत्मचिन्तन करना ]; देशावकाशिक
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