Book Title: Jain Tattva Digdarshan
Author(s): Yashovijay Upadhyay Jain Granthamala Bhavnagar
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 20
________________ (१८) भाषासमिति, उपयोगपूर्वक बोलने को कहते हैं । एषणासमिति, बेयालीस दोपरहित आहार [भोजन] के ग्रहण करने को कहते हैं। आदाननिक्षेपसमिति वह है, जिसमें संयमधर्म पालने में उपयोगी चीजों को देखकर और साफकरके (प्रमार्जन करके) ग्रहण या स्थापन किया जाता हो। पारिष्ठापनिकासमिति उसे कहते है जहाँ किसी की हानि न हो ऐसे निजीवस्थल में मलमूत्रादि त्याज्य चीजें उपयोग (यत्न) पूर्वक छोड़ी जावें। मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति-क्रम से मन, वचन , और शरीर की रक्षा को कहते हैं । गुप्ति शब्द का अर्थ रक्षा करना, अर्थात् अशुभप्रवृति से हटना है । __ पूर्वोक्त पाँच समिति और तीन गुप्ति के विना पञ्च महाव्रत की रक्षा नहीं होसकती है और पञ्च महाव्रत के पालने के विना दश प्रकार के यति [साधु] धर्म का निभाना महा दुर्घट है। गृहस्थ धर्म के द्वादश प्रकार ये है:पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत, और चार शिक्षाव्रत । इन बारहों का मूल सम्यक्त्व है । पॉच अणुव्रत ये है।

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