Book Title: Jain Siddhant Prashnottara Mala Part 01 Author(s): Devendra Jain Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust View full book textPage 5
________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला 'गतिपूर्वक स्थिति' करे, उसे अधर्मद्रव्य निमित्त है; उसमें यदि 'गतिपूर्वक' शब्द को निकाल दें तो क्या दोष आयेगा ? उत्तर - जो गतिपूर्वक स्थिति करें - ऐसे जीव - पुद्गल को ही अधर्मद्रव्य स्थिति में निमित्त है - ऐसी मर्यादा न रहने से सदैव स्थिर रहनेवाले धर्मास्तिकाय, आकाश और काल द्रव्यों को भी स्थिति में अधर्मद्रव्य का निमित्तपना आ जाएगा। 5 प्रश्न 13 आकाशद्रव्य किसे कहते हैं ? उत्तर - जो जीवादिक पाँच द्रव्यों को रहने का स्थान देता है, उसे आकाशद्रव्य कहते हैं । प्रश्न 14 - आकाश के कितने भेद हैं ? उत्तर - आकाश एक ही अखण्ड द्रव्य है, किन्तु उसमें धर्म - अधर्मद्रव्य स्थित होने से (आकाश के) दो भेद हैं- लोकाकाश और अलोकाकाश । यदि लोक में धर्म-अधर्मद्रव्य न होते तो लोक- अलोक ऐसे भेद ही नहीं होते। (- पञ्चास्तिकाय, गाथा 87 की टीका) प्रश्न 15 लोकाकाश किसे कहते हैं ? - उत्तर- जिसमें जीवादिक सर्व द्रव्य होते हैं, उसे लोकाकाश कहते हैं । अर्थात् जहाँ तक जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और काल, यह पाँच द्रव्य हैं, वहाँ तक आकाश को लोकाकाश कहते हैं । प्रश्न 16 - अलोकाकाश किसे कहते हैं ? उत्तर - लोकाकाश के बाहर जो अनन्त आकाश है, उसे अलोकाकाश कहते हैं ।Page Navigation
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