________________ दिग्दर्शन : 15 अस्तित्ववादी हैं उसको 'आस्तिक, और जो नास्तित्ववादी है उसको 'नास्तिक' बाला रहे हैं। ये पाच तत्त्व वस्तुतः ऐसे परस्पर सम्बद्ध हैं कि एक के स्वीकार में सबका स्वीकार आ जाता है, और एक की अवगणना से सबकी अवगणना हो जाती है / ___ईश्वरजक जैनदर्शन को इसी एक कारण से कि ईश्वर का जगत्करीत्व उसको सम्मत नहीं है, मास्तिक' कहा जाय, तो मूलतः ईश्वरनिषेधक [ अशीश्वरवादी ] सांख्य वगैरह को क्या कहेंगे ? वेदानुयायी होने से उनका बचाव किया जाय और अवैदिकता पर ही 'नास्तिकता' का कलश चढाया जाय तो यह बात सभ्य संस्कृति के अनुकूल न होगी / एक कहेगा अवैदिक को नास्तिक, दूसरा कहेगा अबोद्ध को नास्तिक, तीसरा कहेगा अवेदान्ती को नास्तिक और चीया कहेगा नान्जेन को नास्तिक / यो सब अपने अपने सम्प्रदाय के अनुचित माह के वश होकर एक-दूसरे को नास्तिक कहने लागि ता दुनिया / आस्तिक रहेगा कौन? भिन्न भिन्न मास्तमान विचार होगा बिल्कुल स्वाभाविक है। विचाराननता का समूह ही जमा है। तिल पक्ष तचों में ता चार मियामा / और रहेगा ही। तब ऐसा साम्प्रदायिक आग्रह बिल्कुल ठीक नहीं, जो मतभिन्नतावाले की तरफ अनुदार बनना सिखावे / “हस्तिना ताड्यमानोऽपि न गच्छजनमन्दिरम् ' का जमाना तो अब अस्त हो गया ! परन्तु वह जमाना कहाँ था ? कितने भूमि-कोण में था ? किन लोगों में था ? किन शास्त्र-वचनों से प्रेरित था ? इन सब पर गवेषक दटि फकी जाय तो केवल अन्धकार ही नजर आयगा / सि यही समझा जायगा कि किसी