Book Title: Jain Siddhant Digdarshan
Author(s): Nyayavijay
Publisher: Bhogilal Dagdusha Jain

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Page 42
________________ दिग्दर्शन ] special circumstances allow. It does not debar the Jainas from taking up arms in defence of justice and righteousness, to protect the weak from the tyrannical and to enforce the observance of solemn treaties and sacred pledges. It only prohibits them from aggressive militarism, from want on bloodshed and from acts of brutal cruelty." पूर्वकाल में जैन राजा, महाराजा, चक्रवर्ती और जैन मन्त्री कई हो गए हैं जिनकी शौर्य-गाथाएँ इतिहास के पृष्ठों को अलंकृत कर रही हैं / पके जैन होते हुए भी उन्होंने देश की रक्षा के लिए, प्रजा के हित के लिए रण-मैदान में बड़े बड़े जंग खेले हैं। गुजरात का पक्का जैन राजा 'कुमारपाल' एक तरफ उच्च अहिंसाधर्मी था, तो दूसरी तरफ वैसा ही बलवान् योद्धा था। उसने कितने युद्ध किए और उनमें अपने शौर्य-बल से फतेह पाकर देश का मुख कैसे उज्ज्वल रक्खा यह उसके ऐतिहासिक जीवन-ग्रन्थों को देखने से स्पष्ट होगा। देश की अवनति का कलंक जैन धर्म या उसकी अहिंसा पर मढना सरासर अन्याय ही होगा / जैन राजा के शासन में और खास कर उसकी अहिंसाप्रियता की बदौलत देश की अवनति का सूत्रपात हुआ हो ऐसा इतिहास में कहीं पर भी आप को न मिलेगा। जरा ध्यान दीजिए कि इतिहास-प्रसिद्ध वस्तुपालतेजपाल, विमलशाह, पेथडशाह, भामाशाह, चांपाशाह, मुंजाल, उदयन वगैरह जैन मन्त्रिओं और राज्यकर्माधिकारिओं के महान् वीरचरित आज भी हमारे लिए कितने स्फूर्तिदायक और राष्ट्रभक्ति के प्रेरक और शिक्षक हैं ? . मुख्यतया उसी हिंसा को जैनदर्शन में तिरस्कृत किया है जो

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