Book Title: Jain Siddhant Digdarshan
Author(s): Nyayavijay
Publisher: Bhogilal Dagdusha Jain

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Page 31
________________ - 30 [जैनसिद्धान्तडॉ. सीवन लेवी वगैरह पुरोगामी व्यक्तियाँ हैं / स्वर्गस्थ जेकोबी साहब जगत्सम्मुख यह स्पष्ट घोषणा कर गए हैं कि "In conclusion let me assert my conviction that Juinisin is an original system, quite distinct and independent from all others, and that, therefore it is of great importance for the study of Philosophical thought and religious life in ancient India." [ Read in the Congress of the History ___ of religion ] अर्थात्-उपसंहार में मुझे अपना निश्चय जाहिर करने दें कि जैन धर्म एक मूल धर्म [ मौलिक व्यवस्था ] है, और अन्य सबसे बिल्कुल भिन्न और स्वतन्त्र है / और इसलिए, प्राचीन भारतवर्ष के दार्शनिक विचार और धार्मिक जीवन के अध्ययन के लिए वह बहुत उपयुक्त है / जेकोबी साहब के इस उद्गार के अनुसन्धान में, अब यहाँ यह देखना प्रासंगिक है कि जैन धर्म में वह कौन सी बात है जो उसको दार्शनिक विचार के लिए और धार्मिक जीवन के अध्ययन के लिए महान उपयोगी बतला रही है ? ___ दार्शनिक विचार करने के लिए न्यायदर्शक मार्ग है जैन दर्शन का दार्शनिक सिद्धान्त ' स्याद्वाद'; और धार्मिकता की मीमांसा का केन्द्र है उसका आचार-सिद्धान्त अहिंसा / अर्थात् विचारशोधक सिद्धान्त है / स्याद्वाद , और आचारशोधक, अहिंसा / अब इनमें पहले स्याद्वाद को देखें।

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