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भास्कर
भाग २
और प्राहकसंख्या की मुष्टिमेवता की घनघोर-घटा ने भास्कर की किरणों को प्रकाशित होने में अनिवार्य अङ्गा लगा कर इसे अस्तंगत कर दिया ।
अस्तु “जैन-हितैषी एवं श्वेताम्बर समाज से निकलनेवाले "जैनसंशोधक" से जैन-साहित्य और इतिहास-रक्षा की सान्त्वना सदा मिलती रही। किन्तु इनके भी बन्द हो जाने पर इधर इतिहास और अनुसन्धान की ओर सर्वतोभाव से प्रवृत्त ऐतिहासिक विद्वानों की प्राचीनता की तह की बात जानने की प्रबल प्रवृत्ति देख और जैनधर्म तथा इतिहास के सच्चे सहृदय एवं प्रसिद्ध उन्नायक कलकत्ता-निवासी श्रद्धव भाई छोटेलाल जी की प्रेरणा के प्राबल्य का अनुभव कर इस स्वर्णमय युग में ऐतिहासिक जगत् में प्रकाश डालने की कामना से भवन ने अस्तंगत भास्कर को पुनः प्रकाशित कर पृष्टता का परिचय दिया है अवश्य, किन्तु जैन-समाज यह साहित्यिक कार्य सामयिक समझ कर इसका स्वागत एवं अभिनन्दन करेगा, भवन को यह भी दृढ़ धारणा है।
भास्कर का ध्येय वही पुराना है। यदि कोई विशेष परिवर्तन है तो यही कि अंग्रेजी पढ़े लिखे विद्वानों के लिये कुछ पृष्ठों में अंग्रेजी में जैनधर्म विषय साहित्य एवं इतिहास-सम्बन्धी लेख रहेंगे तथा क्रमशः प्रकाशित होनेवाले कोई प्राचीन ग्रन्थ और भिन्न भिन्न प्रशस्तियों का प्रकाशन ।
हाँ, अन्यान्य मासिक पत्रों की अपेक्षा अगर कुछ कमी रहेगी तो इसी बात की कि इसमें किस्सेकहानी, आख्यायिका उपन्यास और हँसी-दिल्लगी चटपटे आदि विषयों का अत्यन्ताभाव रहेगा। केवल आचार्यों के मस्तिष्क की बातें रहेंगी। इसलिये आजकल के मनोरञ्जक समाचार प्रसों के युग में भास्कर के कुछ पाठकों को तो लोहे के चने चिबाने का सा अखरेगा। पर किया क्या जाय ? भास्कर के ध्येय की ओर ध्यान देने से इसमें हँसी-खुशो एवं कुश्तो की गुंजायश ही नहीं। साथ ही साथ जैन ऐतिहासिक उत्कर्ष अभिव्यक्त करने के अतिरिक्त साम्प्रदायिकता की शृङ्खला की जकड़बन्दी इसे पसन्द नहीं, क्योंकि यह तो सभी जैन-सम्प्रदायों की सहानुभूति-सुधा का पान कर अमर बनने की चेष्टा करेगा।
किसी पत्र के सुचारुरूप से संचालन में दब और लैखिक साधन की परमावश्यकता होती है। दम्ब के लिये जैन समाज लक्षाधिपति एवं कोट्यधिपति आदि सम्पन्नतासूचक प्रचुर प्रख्याति प्राप्त कर चका है। अब रही लैखिक साधन की आवश्यकता, सो अब इस समाज में साहित्विक शूरवीरों की विरलता भी बड़े वेग से विलीन होती चली जाती है। आवश्यकता है केवल अपने साहित्व और इतिहास से सच्ची लगन की। समाज से जहाँ इसे थोड़ा मी आश्रय मिला यहाँ वह अपनी सुनहली एवं गुलाबी किरणों से यहाँ की कौन बात कहे देशदेशान्तरों में भी विद्वानों का चित्ताकर्षक किए बिना वह नहीं रहेगा।
भास्कर ने अपने स्थायी जैन इतिहास और साहित्य के प्रकाशन-द्वारा जैनजनता को जो कुछ भी सेवा की है, उसका इसे गर्व है। जिस प्रकार युद्ध में बार बार हार खाकर उत्साहहीन तथा निष्क्रियशीन हो बैठे हुए एक प्रसिद्ध बादशाह अन्नकण को ले जाने में असंख्य बार विफल प्रवास होने पर भी अन्त में कृतकार्य हुई चतुर चींटी की अविश्रान्त अध्यवसायशीलता और चातुरी से "पुनः करो उद्योग" की पुनीत शिक्षा के फलस्वरूप पुनरुद्योग से समरविजयी बना उसी प्रकार आशावादिता के