Book Title: Jain_Satyaprakash 1940 12 Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad View full book textPage 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैनदर्शनका कर्मवाद लेखक-आचार्य महाराज श्रीविजयलब्धिमूरिजी (गतांकसे क्रमशः) पाठकोंको ज्ञात हुआ होगा कि जगत को रचनामें ज्यादा नामकर्मका हिस्सा है एवं बहुधा प्रवृत्तिओंमें नामकर्मकी ही आवश्यकता रहती है। प्रथमकी चार गतिकी प्रकृतिमेसे नर-देवकी गतिरूप दो प्रकृति पुण्यरूप हैं और शेष दो पापरूप हैं। पांच जातिनामकर्ममेंसे एक पंचेन्द्रियकी जाति पुण्यकर्म है बाकीकी पापप्रकृति है। शरीर पांच और तीन अंगोपांग ये आठ पुण्यप्रकृति हैं । छ संघयण और छ संस्थानमेसे पहिला संघयण और संस्थान ये दो पुण्यस्वरूप है, बाकीके दश पापरूप हैं । प्रशस्त वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श इष्ट रूप होनेसे पुण्यप्रकृति है और अप्रशस्त अनिष्ट होनेसे पापरूप बनते हैं। देव-नरानुपूर्वी पुण्य है, बाकी रही हुई दो पाप हैं। शुभ खगति पुण्य है, और अशुभ खगति पाप है। पराघात, उश्वास, आतप, उद्योत, अगुरुलघु, तीर्थकर और निर्माण नामकर्म ये सभी पुण्यप्रकृतिओमें दाखिल है। उपघात नामकर्म पापप्रकृति है। उपर कहे हुए सदशकको पुण्यमें दाखिल किया और स्थावरदशकको पापके अंदर । इस तरहसे नाम कर्मकी ६७ प्रकृतिका पुण्य पापरूपसे विभाग किया गया है। इसकी स्थिति २० कोटी कोटी सागरोपमकी है। अबाधाकाल २००० वर्षका है। उदयमें और बन्धमें इतनी हि संख्या है, मगर सत्तामें शरीरके साथ नवीन पुदगलोंको, काष्ट विभागको जतु-लाखकी तरह, जोड देनेवाले बन्धन और पांच शरीरके योग्य पद्गलको इकट्ठे करनेवाले पांच संघातन, वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्शके उत्तर भेद पांच, दो, पांच और आठको उपर कहीं हुई प्रकृतिओमें मिलानेसे १०३ प्रकृति मानी जाति है । कारणकि वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श ये चार ही प्रकृतियें बन्धमें गिनि गई, और सत्तामें इन चारको बीस मानी गई अतः वर्ण चतुष्ककी सोलह बढ जानेसे उपरकी આદર કરીને એહ અંગએ ગુણ આણવા ખપ કરે, ભવ પરે પર પ્રબલસાગર સહજ ભાવે તે તરે, ઈમ ગુણ વિશાલા કુસુમમાલા જેહ જિસુંદકંઠે ઠરે, તે સયેલ મંગલ કુસુમમાલા સુજસ લીલા અનુભવે (૨૭) કવિવર શ્રી. જ્ઞાનવિમલસૂરિજીની આ કૃતિ જાલેર (મારવાડ)ની ત્રિસ્તુતિક ધર્મશાળા હસ્તકના જ્ઞાનભંડારમાંના સાતમા નંબરના બંડલમાંની એક હસ્તલિખિત પ્રત ઉપરથી ઉતારી અક્ષરશઃ અહીં આપી છે. For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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