Book Title: Jain_Satyaprakash 1940 12
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 33
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [१११ ४] તત્વાર્થભાષ્ય ર અકલંક (अ) में जो ' अनंतानुबंध्युदयात् ' आदि वाक्य है, यह स्वोपज्ञ* भाष्य का है। नं. (इ) में 'प्रमत्तयोगात्' आदि सूत्र तत्त्वार्थसूत्र का स्पष्ट है। नं. (ई) में देवगुप्तसूरि के 'शास्त्रटीका चिकीर्षुणा' पद से, तथा नं. (ऊ) में सिद्धसेनगणि के तत्वार्थशास्त्रटीका' आदि पद से स्पष्ट है कि ' शास्त्र' अथवा ' तत्त्वार्थशास्त्र' ये नाम सभाष्यतत्त्वार्थसूत्र के हैं । इसी तरह नं. (ए) में 'तत्त्वार्थाधिगम का अर्थ सभाष्यतत्त्वार्थ है, उसका अर्थ केवल तत्त्वार्थसूत्र किसी भी हालत में नहीं हो सकता। इससे स्पष्ट है कि उक्त 'तत्त्वार्थाधिगमाख्यं ' आदि भाष्यकारिका के टीकाकार स्वयं देवगुप्तसूरि तत्त्वार्थसूत्र और तत्त्वार्थभाष्य को एककर्तृक समझ कर दोनों को सामान्य से " शास्त्र" कह कर सूचित करते हैं । यहाँ यह बता देना आवश्यक है कि सिद्धसेनगणि ने मूलसूत्र और भाष्यश्लोकों का प्रमाण निम्न कारिका में अलग अलग स्पष्टरूप से बताया है मूलसूत्रप्रमाणं हि, द्विशतं किंचिदूनकम् । । भाष्यश्लोकस्य मानं च, द्वाविंशतिशतानि वै ॥ (ग) सिद्धसेनगणि की तत्त्वार्थटीका के निम्न संधिवाक्य भी इस बात का अच्छी तरह समर्थन करते हैं कि एक ही ग्रंथ तत्त्वार्थाधिगम, तत्त्वार्थसूत्र, तत्त्वार्थसंग्रह, अर्हत्प्रवचन, अर्हत्प्रवचनाधिगम, अर्हत्प्रवचनसंग्रह, तथा तत्त्वार्थाधिगमसंग्रह+ के नाम से कहा जाता था (अ) इति श्रीतत्त्वार्थाधिगमेऽहत्प्रवचनसंग्रहे भाष्यानुसारिण्या तत्त्वार्थटीकायां प्रथमोऽध्यायः। (आ) इति श्री तत्त्वार्थसूत्रेऽहत्प्रवचनाधिगमे.. ............ .......द्वितीयोऽध्यायः (इ) इति श्रीतत्त्वार्थसूत्रेऽर्ह प्रवचने भाष्यानुसारिण्यां टीकायां लोकप्रज्ञप्तिामा ध्यायस्तृतीयः। (ई) इति श्रीतत्त्वार्थसंग्रहेऽहत्प्रवचने....चतुर्थोऽध्यायः ।। (उ) इति श्रीमदर्हत्प्रवचने तत्त्वार्थाधिगमे....अष्टमोऽध्यायः । उक्त तत्त्वार्थाधिगम आदि नाम केवल तत्त्वार्थसूत्र के नहीं हैं; ये नाम तत्त्वार्थसूत्र और तत्त्वार्थभाष्य दोनों के हैं । ऊपर पूर्वपक्ष के(क) भाग में दिये हुए ‘इति श्रीमदहनवचन' आदि वाक्य का जो अर्थ किया गया है, वह व्याकरणानभिज्ञता सूचित करता है । उक्त वाक्य में यदि — उमास्वातिवाचकोपज्ञसूत्रे' पद होता तो कदाचित् कहा . * अनंतानुबंधी सम्यग्दर्शनोपघाती, तस्योदयात् सम्यग्दर्शनं नोत्पद्यते, पूर्वोत्पन्नमपि च प्रतिपतति (८. १० का भाष्य). + तत्त्वार्थाधिगमसंग्रहस्याविष्कृतम् । (सिद्धसेनगणि टीका पृ. २३.) For Private And Personal Use Only

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