Book Title: Jain_Satyaprakash 1940 12
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ] શાહ માણિક દ્રષ્ટ સુરાણા [ १४६ ] पढीहार सालुनै फुरमाया है सु कहसी तै माफक जाणसी । वा थारै तोलमें आसु पृठी अरज कराये जावतो पकायतरी करणो फेर सिरदारांने सला पुछ लेयी सारांरै तुलै सु सलाकर जाबजाब करजो सालु मुख जबानी कहसी संवत १८८५ मीती पोह वदी १२ वार शुक्रवार । १ रुको खास दसकत साहमाणकदीली विलयम फार्स्टर बहादुर के पत्र Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कप्तान विलयम फार्स्टर बहादुर भी आपका बहुत सन्मान करते थे । उन्होंने भी शाह माणिकचंदजीको कई पत्र दिये थे, जिनमें से चार अभी आपके वंशधर शाह संसकरणजी सुराणा के पास सुरक्षित हैं । उनमें से यहाँ पर एक पत्र जो कि विशेष महत्व का है, उसकी अविकल नकल दी जाती है । बाकी तीन पत्रोंके अंतिम वाक्य और संवत मिती दिये जाते हैं । लेख बड़ा होनेके भयसे उन तीन पत्रोंकी नकल नहीं दी गई है । विशेष अवकाश मिलने पर उन पत्रोंकी भी अविकल नकल इस पत्रवे अगले अंको में प्रकाशित करनेकी चेष्टा करेगें । [१] ॥ श्रीरामजी || सिधश्री सरबयोपमां साहजी श्री माणकचंदजी जोग लिखतु झुणझुणु कपतान वलयम फास्तर साहेब बहादुर केन मुजरा बाचजो अठाका समाचार भलां छे तुमारा सदा भला चाहेजे अपंच खुमाणसिंघजी कु तुमारी तरफसे जिस काम वासते यहाँ राखा था जीसका तो जबाब अब ताई बड़ा साहेब बहादरजी पाससे आया नहीं और खुमाणसिंघजीने दुखसत मांगणे की बोहत सीताबी करी जी वासते खुमाणसिंघजी मजकूर कुंतो खुसी के साथ दुखसत दीगई है । सौ या तुमारे पास पोहचकर अहवाल सारा बयान करेही गा और जीस बखत जबाब बड़ा साहेब बहादरजी पास से आयेगा और जरूरत बाहत तुमारी तरफसे कीसी आदमीकी होगी तो बेर बखत बुलाणे के भेजना मुनालीब पडेगा और या नहीं मारफत - मुनसुखरामजी गुमासते अमरचंदजीके अहवाल मुगत जावेगा और हमे दोस्त जाणोगे दोस्तीईरादे हंमेसा खेरयत मीजाज की लीखते रहोगे मीती जेठ सुदी ११ सं० १९०४ का । विलियम फास्टर के अंग्रेजीमें हस्ताक्षर २५ मई, १८४७ ई. [२] " और हमे दोस्त जाणकर जो काम मुतालब होवे सो हमेसां लीखते रहोगे और समाचार खुमाणसिंघका लिखा सो जाणजो मोती जेठ सुदी ११ संवत १९०४ " Y [३] " और हमे दोस्त जांण खुशी मीजाज का समाचार लीखते रहोला: मीती माह सुदी ४ समत १८९७" [४] "यहां मतलब कामकाज लिखते रहागं मीती जेठ सुदी ७ समत १९०४ " इस लेखकी प्रस्तुत सामग्री हमें शाहजीके वंशधरोंसे प्राप्त हुई हैं । अतः हम उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं । इनके अलावा मैं अपने आत्म-बंधु भाई जयचंदलाल गौठी और नाहटा - बंधुओंको भी धन्यवाद देता है । For Private And Personal Use Only

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