Book Title: Jain Satyaprakash 1938 04 SrNo 33
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // श्रीनेमिनाथ भगवत्स्तोत्रम् // कर्ता-मुनिराज श्री वाचस्पतिविजयजी [ पृथ्वीछन्दसा गीयते ] // 1 // // 2 // // 3 // स्मृतोऽपि विततातपं रहयतीन्दुकल्पो विभुः, विलोकनगतो मुदा यतिरिपून्प्रभाससङ्गतः / मनो मम सुधाकरे विकचपद्मलीलाकरे, सुनेमिमुखचन्दिरे चिरगतं द्विरेफायताम् नमामि जगदालयं विततदेवमौलिथय नखेन्दुकमलाकरं समुदितं पयोमुक्प्रभम् / सदा मुदनदप्रदं विशदनीतिसम्भावुकं, ' मुदा सुकृतनेमिग विकलनेमिनाथं प्रभुम् समस्तजनवन्दितं सुरनरेशसम्पूजितं, नृशंसदुरितावली ब्रजति दूरदेश दुतम् / अमन्दसुखदाकं विततकल्पचिन्तामणि, शिवाङ्गजजिनेश्वरं शिवमहीप्रधानं स्तुवे समुद्रविजयात्मजं शुभशिवोदरालंकृत, समुद्रमहिमा महोभुविगतन्नु सन्यकृतिम् / सदा जलनिवासनं कमलमेतिरूपान्मुहुः, स्मरामि शिवकारणं निखिलतेजसां संभवम् भजामि शिशुताश्रयन्निखिलशीलसंशालिनं, सुशंखशुभलाच्छितं मुरहरादिसंप्रार्थितम् / चकोरगतिकारणं भजति यापि राजीमती, तमेव सततं भवे शुभभवाय संभाविनम् शचीपतिरमुं जिनं समवलोक्य पुण्यात्मकं, स्मरंहरप्रभाहरं ननु नियोजितोन्यकृतौ / प्रमुक्तशरपञ्चकं समवधूय मारन्नु य श्चकार शिखरं क्षणात् सुकृतभूमिमीशं भजे स्तवीमि सततं सुधास्रववचोवरं भासुरं, निनाय सुषमाकलं समयमत्र संदीक्षितम् / मुरैवतगिरेजनो भजति सौम्य कैवल्यगं, सुपद्यमपरं कृपा यदि यमेध तस्यैव सा // 4 // // 5 // // 6 // // 7 // For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 44