Book Title: Jain Satyaprakash 1938 04 SrNo 33
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (324] श्री सत्य / [15 "अलोके नीवा न सन्ति" (अलोकमां जीवो नथी) "हूदे वहिर्नास्ति' (जलहूदमां अग्नि नथी) कारणके अलोकमां जीवोनी अने जलहूदमां अग्मिनी प्राप्ति ज नथी। जिज्ञासुओनी जिज्ञासापूर्ति कदाच मध्यस्थ हदये एवी जिज्ञासा प्रदर्शित करवामां आवे के प्रस्तुत पाठमां मध माखण ने मांस मदिरानां नामो शा माटे आप्यां? काई प्रयोजन छे ? आ जिज्ञासानी तृप्तिमां अनेक प्रकारो संभवे छ / प्रथम प्रकार-ययपि प्रस्तुतमां कल्प्य जे पांच विगइओ-दुध, दहि, घी, गोळ अने तेल, तेनां नामनी जरूर हती, छतां पण विकृति भावनी साम्यताने लाईने विगहना दंडक पाठने अखंडित राखवा मध माखण ने मांस मदिराना नामो आप्यां छे, अर्थात्-प्रस्तुतमां तेनुं विशेष प्रयोजन नथी. जैनागमनी शैली छे के प्रस्तुतमा विशेष प्रयोजन न होय तो पण क्वचित् दंडक पाठने अखंडित राखवा पण नामो आपघामां आवे छे, आ बात अमो प्रथम सविस्तर नणावी आव्या छीए। द्वितिय प्रकार ने कुलमां प्रस्तुत मुनिने गोचरी जवान छे, ते कुलो भोजनना विषयमा अत्यन्त समृद्ध छे. त्यां विविध जातनां भोजनो मळी शकशे एम सूचषवाने माटे मध माखण ने मांस मदिरनां पण नामो आप्यां छे. परंतु त्यां आटली ज वस्तु अवश्य मळशेज ओछी वत्ती नहि एम नणाववा माटे नथी, भिक्षाकुलनी समृद्धि नणाववानो उद्देश जो न होत तो "त्यां मने इष्ट भोजन मळशे' एटलं ज जणावत / व्यवहारमा पण कोइ कहे के " से शेठ घणा धर्मिष्ट हता, मने दवा दारुनी जोगवाह करी आपी हती" तो अहिंया दारु शब्दथी मदिरा लेवानी नथी, किन्तु विविध जातनी अनुकूल दवा तथा तेनां साधनो समजवानां होय छे' तृतीय प्रकार-जेने माटे उत्सर्ग तेने माटे अपवाद अने जेने मारे अपवाद तेने माटे उत्सर्ग अवश्य होय छे. परंतु कये समये कयो मार्ग हितावह छे तेनी लगाम भवभीरु गीतार्थ गुरुनी मतिने आधीन छे. आ पातमा प्रवेताम्बर तथा दिगम्बर दर्शन सहमत छे, आ नियमने अनुसारे कोड विकट परिस्थितिमा लेपादि बाह्य परिभोगादिने अर्थ मध वगेरे ग्रहण करवां पडे तो पण मायाने तो सेववी ज नहि, आ वातने नणाववा माटे मध माखण ने मांस मदिरानां नामो आप्यां छे. जुओ आ वातनी साली पुरतां टीकाकार महाराननां वचनो:---- " नवरं मद्यमांसे (मधुनवनीते च) छेदसूत्राभिप्रायेण व्याख्येये / भावार्थ-आपवादिक विधाननी बहुलतावाला छेद सूचना अभिप्रायथी मांस मदिरानुं (अने मध माखणY) व्याख्यान करवू / For Private And Personal Use Only

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