Book Title: Jain Satyaprakash 1938 04 SrNo 33
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 37
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ ] કેચર વ્યવહારીકા સમય-નિર્ણય [351 बतलाया गया है इससे भी कोचरसाहका सोलहवीं सताब्दी में होना संभव नहीं क्योंकी समरालाहने सं. 1371 में शत्रञ्जयका उद्धार कराया / उसके पुत्रका सोलहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में विद्यमान रहना असंभव है / खरतर गच्छ पट्टावली के अनुसार १५वीं शताब्दी का पूर्वार्ध ही उसका समय विशेष मंगत है ! जोकि निम्नोक्त विचारणा से विशेष प्रमाणित हो जाता है। शत्रुजय पर मं. 1414 का एक लेख विद्यमान है, वह समरासाह और उसकी धर्मपत्नीकी मृति पर है जिसे उपर्युक्त सजनसिंह और उसके भाई सालिगने बनवाया था, लेख इस प्रकार है :____ "संवत 1414 वर्ष वैशाख सुदि 10 दिने गुरौ संघपतिदेशलसुतसा० समरा समरश्री युग्मं मा० सालिग सा० सजनसिंहाभ्यां कारितं प्रतिष्ठित श्री ककसरिशिष्य : श्री देवगुप्तस्कृरिभिः / / शुभं भवतु" / -(जैन ऐतिहासिक गूर्जर काव्य संचय राससार पृ. 166) // इतना ही कयों ? सजनसिंह की मृत्यु भी अन्य एक लेखसे सं, 146 से पूर्व प्रमाणित होती है वह लेख इस प्रकार है: “संवत् 1468 वर्षे आपाढसुदि 3 रवी उपकेशज्ञातौ वेसटावन्ये चिंचट गोत्र सा. श्री देसल सुत साधु श्री समरसिंह नन्दन सा श्री सज्जनसिंह सुत सा श्री सगरेण पितृमातृश्रेयसे श्री आदिनाथ चतुर्विशति जिनपट्टकः कारितः श्री उपकेश गच्छे ककुदाचायसंताने प्रतिष्ठितं श्री देवगुप्तमृरिभिः। -(जैन धातुपतिमा लेखसंग्रह भाग, 2, ले. 560) 3 रासकारने कवि देपाल को देसलहरा समरा सारंग के घरका याचक भी लिखा है, इससे हमारा कथन मान लेने पर कवि देपाल का सोलहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में होना सिद्ध नहीं होता, क्योंकि समरा साह का समय 1371 से 1414 निश्चित है, पर इसके विषय में विचार करने पर ज्ञात हुआ कि वह रासकारकी भूल है और वह भूल संभवतः किम्वदन्तीयां और देपालकृत समरा सारंग के कडवे के कारण हुई होगी। श्रीयुक्त मोहनलाल * पृ. 8 में 'समरनो पुत्र सज्जनसिंह ए ज रासमां वर्णवेल साजणसिंह छ।' सूरिजीने संवत 1516 लिखित स्वर्ण कल्पसूत्र की प्रशस्तिसे साजनसो के वंशानुक्रम के 9 श्लोक और वंशवृक्ष देकर अच्छा प्रकाश डाला है, पर प्रशस्ति पुरी देकर यदि विचार किया जाता तो हमारे खयालसे यह भूल नहीं होती / यह प्रशस्ति अपूण देने से दूसरे किसीको भो अद्यावधि इस स्खलना के सम्बन्ध में विचार करनेका अवसर मिला ज्ञात नहीं होता। और हम भी सज्जनसिंहकी कौनसी पोढीमें शिवशंकर हुए जिनकी पत्नी देवलदेने प्रस्तुत कल्पसूत्र वा. वित्तसार को वहराया, कह नहीं सकते। For Private And Personal Use Only

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