Book Title: Jain Satyaprakash 1938 04 SrNo 33
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 38
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [352] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [at दलीचंद देसाई महोदयने जैनयुग, घर्ष 5. अं. 9-10 वैशाख, ज्येष्ठ के अंक में उपर्युक्त "कवि देपालकृत समरासाह का कडखा' प्रकाशित किया है। देसाई महोदयने उस पर एक नोट लगा कर उपर्युक्त आपत्तिका निवारण कर दिया है, जो यह है:____“कवि देपाले मांगरोलना सरोवरनी पाळे चारणो पासे जे जूना कडखो कवित्त सांभल्या ते अहीं नौंधेल छे. ते कवित्त करनारा पकनुं नाम शंकर दास छे x x + समरा अने सारंग बन्ने भाईयो हता, मोटो संघ लइ संवत् १३७१मां सिद्धगिरि तथा गिरनारनी यात्रा करी हती. आ कवि देपाल सोलमा सैकानी शरूआतमां थएल छे x x समरा सारंग देसलहरा हता अने तेमना वंशजो देसलहरा कहेवाता हता. ते वंशजोनो आश्रित ते हतो, नहीं के समरा सारंगनो. कारण के समरा सारंग सं. १३७१मां थया ज्यारे देपाल सं. 1501 थी 1534 सुधीमां हयात हतो, बन्ने वच्चे लगभग सो ऊपर वर्षानुं अंतर छे” इससे उपर्युक्त आपत्तिका सर्वथा निरसन हो जाता है। 4 अब एक चौथा प्रश्न और भी विचारणीय रह जाता है वह यह है कि रासकारने कोचर साह जब व्यापारर्थ खंभात आया तब वहां तपगच्छ नायकसे व्याख्यान श्रवण करने का लिखा है। सुमतिसाधुसरिका इसी ऐतिहासिक राससंग्रह भाग 1 पृ-२९ (राससार) में जन्म 1494, दीक्षा 1511, गच्छनायकपद 1518 और स्वर्ग सं. 1551 लिखा है अतः सुमतिसाधुसूरि के समयमें यदि कोचर साह हुए हों जैसाकि रासकारने बतलाया है तो उनका समय भी सं. 1518 से 1551 होना चाहिए परन्तु आगे बताए हुए प्राचीन विश्वसनीय प्रमाणोंके सामने रासकारकी यह बात स्खलनायुक्त ज्ञात होती है। कोचरसाह और साजणसी के समय खंभात का अधिपति कौन था? कोचरसाहको 12 गांव का अधिकारी किसने बनाया ? इसके विषय में रासकार एवं पट्टावलीकार दोनोंने ही कोई नाम-निर्देश नहीं किया। अतएव उस सम्बन्ध में ऊहापोह करने का यहां अवकाश नहीं है। 5 खरतरगच्छ की पट्टावली सेकोचार साह के समय का ही प्रकाश नहीं पडता परन्तु साथ साथ उसके सलखणपुर आदि 12 गांवों में अमारि उद्घोषण कराने की घटना भो विशेष परिपुष्ट होती है। कोचरसाह को रासकारने प्राग्वाट ज्ञातीय लिखा है। प्रमाणाभाव से यह नहीं कह सकते कि यह कहां तक ठीक है फिर भी रासकार ने उसे तपागच्छीय श्रावक लिखा है यह अवश्य विचारणीय है। खरतर गच्छकी पट्टावली से कोचर साह के खरतर गच्छाचार्यों के प्रति बहुमान-भक्ति, स्पष्ट ज्ञात होती है | तभी तो सलखणपुरमें श्री जिनोदयसरिजीके पधारने पर कोचरसाहने समारोह पूर्वक प्रवेशोत्सव कराया था। उस समयकी परिस्थिति देखते अपने अपने गच्छका राग उस समय भी विशेष रूपसे ही ज्ञात होता है। For Private And Personal Use Only

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