________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कोचर व्यवहारीका समय-निर्णय लेखक-श्रीयुत अगरचंदजी भंवरलालजी नाहटा श्री विजयधर्मसूरिजी सम्पादिक ऐतिहासिक राम संग्रह (सं. 1976 प्रकाशित भाग 1 में सर्व प्रथम तपागच्छोय कवि गुणविजयरचित काचर व्यवहारी रास प्रकाशित हुआ है जिसे कविने सं, 1687 आसोज सुदि 9 को डीसा नगरमें रचा था यद्यपि कविने कोचर व्यवहारी किस संवत् में हुए इसका कोई स्पष्ट काल निर्देश नहीं किया है फिर भी रास में उल्लिखित कोचर व्यवहारी से सम्बन्ध रखनेवाले सुमतिसाधुसूरि आर देपाल का उल्लेख होने से कोचर व्यवहारीका समय, उल्लिखित दो व्यक्तियों के समयानुसार मोलहवीं शताब्दी का पूर्वाई. ठहरता है / रास सार में आचार्य श्री विजयधर्मरन रिजीने भी उनके उस समय में होने में कोई आपत्ति नहीं दर्शाई, प्रत्युत घटनाको पुष्टि अन्य प्रमाणों द्वारा फुटनोट में की गई है, परन्तु जबसे हमने खरतर गच्छको प्राचीन पट्टावली+ जोकि सोलहवीं शताब्दी के पूर्वाद्ध की लिखी हुई है, जिनादयसरि (1415-32 के सम्बन्ध में "पर्तितद्वादशग्रामामाश्घिोषणेन सुरवाणसनाखत सा. कोचरश्रावकेण सलखणपुरे कारितप्रवेशोत्सवानां” लिखा देखा तभी से कोचर साह के १६वीं शताब्दी में होने के विषयमें सन्देह हो गया। सूरिजी के उपर्युक्त ग्रंथ (रास और राससार) एवं अन्य प्रमाणों पर विशेष विचार करने पर हमें हमारी शंका एक नवीन ऐतिहासिक सत्य की ओर ले जाती हुई ज्ञात हुई, जिसके विषय में यहां विशेष विचारणा की जाती है / 1 सोलहवीं शताब्दी के पूवार्ड में लिखित खरतर गच्छ पट्टावली में कोचर शाह के जो विशेषण लगाए हैं वे कोचर व्यवहारिया रास के विषय से बिलकुल मिलते हुए हैं यथा:-१ बारह गावों में अमारि घोषणा. 2 सुरत्राण सनाखत. 3 सलखणपुरमं / अतः रासनायक और पट्टावली में उल्लिखित कोचर साह के एक होने में कोई सन्देह नहीं रह जाता! ऐसी अवस्था में काचर माह का समय सोलहवीं शताब्दीका पूर्वार्द्ध न होकर तत्कालीन लिखित पट्टावली के कथनानुसार श्री जिनोदयसूरिजी के समकालिन-१५ वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में होना विशेष प्रमाणित होता है। रास की रचना पट्टावली से 150 वर्ष पश्चात हुई है अतः उसका लेखन निश्चित रूपसे स्खलनारहित नहीं कहा जा सकता। 2 राससार के पृ० 3 में रास में उल्लिखित कोचरसाह के सहयोगी साजणसो को शत्रुजयोद्धारक सुप्रसिद्ध समरासाहका पुत्र सज्जनसिंह + महा० जयसागर शि, महो. सोमकुचर शि, देवनंदन महिमारत्न लिखित। For Private And Personal Use Only