Book Title: Jain Satyaprakash 1938 04 SrNo 33
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 3
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir णमो त्थु णं भगवओ महावीरस्स सिरि रायनयरमझे, संमीलिय सव्यसाहुसंमइयं / पत्तं मासियमेयं, भव्वाणं मग्गयं विसयं // 1 // શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ પુસ્તક 3 : मां 33: અંક 9 વિક્રમ સંવત્ 1994 : ચૈત્ર વદી 1 વીર સંવત્ 2414 શુક્રવાર :सन 1938 એપ્રિલ 15 // सिद्धचक्र लघुस्तोत्रम् // कर्ता-आचार्य महाराज श्रीमद् विजयपद्मसूरिजी (गतांकथी पूर्ण ) // आर्यावृत्तम् / / समणोवासगसुत्ते, वणियभावे सुमाहणे पकिवे // णिज्जामगमग्गदए, भावरुहंते व झाएमि // 25 // णियकम्मेगत्तहणे, झाणाईए पसन्नमुहकमले // कल्लाणवण्णवण्णे, भाषा वंदामि अरहते // 25 // अञ्चंतातित्थयरे, पयत्थभावं मणंसि भाता / / सञ्चाणंदसरूवा, खिप्पं भविया हवंति मुया // 27 // उघयारित्तसहावा, जे पयपणगे पयासिया पढमा / णे पुजतित्थणाहा, सरियव्वा चित्तथेजेण // 28 // मणुयत्तं पुण्णेणं, णवपयसंसाहणं च पुण्णेणं // लब्भइ ता पढमदिणे, अरुहंताराहणं कुजा / / 29 / / गुणलक्खा विहिमाणो, अमियविहाणप्पवित्तिपरिमुइओ // सिरिसंघो सिरिनिलओ, मंगलमाला लहेउ सया॥३०॥ अरिहंतञ्चणझाणा, वंदणणमणेहि विग्यविहवण // उवसग्गवग्गविलओ, णियमा चित्तंबुउल्लासो // 31 // गुणणंदणिहिंदुसमे, सिरिगोयमकेवलत्तिवरदियहे / / पहुधम्मपुण्णरसिए, जहणउरीरायणयरम्मि // 32 // सिरिसिद्धचक्कसंग, थुत्तं तित्थेसराण पढममिण // सुग्गहियक्खाण महो-वयारि गुरुणेमिसूरीण // 33 // सीणेणं पोम्मेणं, रइयं सिसुचंदकंतपढणढें // सिद्धाइत्थवणाई, अट्ठ करिस्सामि सेसाई // 34 // For Private And Personal Use Only

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