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म २-३] દિગબર શાસ્ત્ર કેસે બને?
[७] श्रीशीरप्रमुभाषितार्थघटना निलडितान्यागमन्याया श्रीजिनसेन (जयसेन ) सन्मुनिवरैरादेशितार्थस्थितिः । दीका श्रीजयचिह्नतोरधवला रसूत्रार्थसम्बोधिनी, स्थेयादाऽऽरविचन्द्रमुक्त्वलतमा श्रीपाल सम्पादिता ॥
–श्रीमान् प्रेमीजी सम्पादित विद्वद रत्नमाला. पृ० २९ अर्थात्-गुजरात के राजा के अधीन मटग्राममें शक सं. ७५९में फा० सु० १० के दिन ६०,००० प्रलोक प्रमाण तीन खंडमें जब संज्ञावाी उरुधवला (महाधवला) नामकीहीका समाप्त हुई । यह राजा मोववर्ष के राज्य के समान अभ्युदयको प्राप्त हो। इसके निर्माता है-० जिनसेन (आ० जयसेन)।
प्रेमीजीने इस प्रशस्तिमें निर्माताके स्थानमें डा० जिनसेवजी का नाम बताया है। किन्तु दो श्रुतावतार, ग्रखंधी तथा अन्य ग्रन्थों में का० जयसेनने जयधवला बनाई ऐसा उल्लेख है। जा० वीरसेनजीने राजवार्तिक की रचना के बाद जयधवला का प्रारंभ किया। उनकी मृत्युके बाद 10 पद्मनंदी और उनके बाद आ० जिनसेन पट्टधर हुए, और T० वीरसेन के स्वर्गगमन के बाद और श० सं० ७५९से पहिले टीका समाप्त हुई । का० जिनसेन के शिष्य आ० गुणभद्रका सत्ताकाल श० सं० ७२० है। .० जिनसेन जा० जयसेन को श्रुत--निधि मानते हैं और प्रशस्ति में जय चिह्नयुक्त जयधवला का निर्देश है इन सब बातोंको सोचकर निर्णय करना चाहिये किजयधवलाके रचयिता कोन हैं ? आ० जयसेन हैं कि मा० जिनसेन ? अस्तु ।
दिगम्बर सम्प्रदायमें आदिम सिद्धांत-शास्त्र धवला टीका यानी “धवलग्रंथ " है । श्रुतावतार, सूखंधो वगैरह इतिहास ग्रंथों में धवला को हो श्रुत के रूपमें स्वीकारा है । इससे भिन्न आ० कुन्दकुन्द वगैरह किसीके भी ग्रंथको श्रुतरूप माना नहीं है । माने उनके बनाये षट् प्राभूत वगरह ग्रन्थ श्रत ग्रन्थ नहीं हैं । यदि श्रवण बेल्गुल के शिलालेख देखे जाय तो उनमें आ. कुन्दकुन्द वगैरह के क्रमशः नाम हैं । राद्धांत निर्माता के रूप में किसी और और आचार्यको तारीफ है, किन्तु आ० वीरसेनजी का नाम तक नहीं है। सिर्फ ले. नं. १०५में ० जिनसेन और 10 गुणभद्रके नाम उत्कीर्ण हैं किन्तु आ० वीरसेनजी और आ० जयसेनजीके नाम कतई मिलते नहीं हैं। शिलालेखोंमें भिन्न भिन्न नाम मिले जबकिसिद्धांतके प्रणेता आ० बीरसेन या 10 जयसेनका नाम निशान भी न मिले यह कैसी ...श्चर्यकारी घटना है ? । इससे यह संभावना हो सकती है कि किसीको .T० कुन्दकुन्दके सिद्धांत मान्य है किसी को आ० वोरसेन के सिद्धांत मान्य है । इसीसे यह भी पता चलता है कि ये ग्रन्थ दि. समाजमें भी सर्वमान्य नहीं है। [1111 १४ ८ मा नाये ]
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