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अॅड २-३ ]
સૂર્ય કુંડકા શિલાલેખ
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(५) राज्ञा गुरुः स जगदेकधनुर्धरोपि तुष्टो भवत् खलचि साहि गयासदीनः ॥ ७ ॥ सचिवकृपालो राज्ञां कामप्यासाद्य भास्वतः स्वप्ने || व्यस्वय दुर्जित सुकृतप्रतिपत्न्यै सूर्यकुंडमिदम् ॥ ८ ॥ स्वस्ति श्री मति वीर वीक्रम शके नेत्राब्धि तिथ्युन्मिते
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(६) १५४२ ॥ कल्याणोदय शालिवाहन शके शैलाभ्रशक्राक्तिते ॥ १४०७ ॥ सत्यब्दे परिधाविनानि सहसः पक्षे वलक्षे तिथौ षष्ठयां भास्करवासरे श्रवण भे निष्पत्ति मागादिदम् ॥ ९ ॥ पूर्णचन्द्रगलितामृतधारा माधुरीभरधुरन्धरवारि ॥ सूर्यकुण्ड मिदमा पनुश्यानि -
... जलतां जनतानाम् ॥ १० ॥ यावच्छिव चन्द्रकलां विभर्ति श्रियो हरेर्यावदुरश्चकास्ति । तावत्प्रतिद्योतितसूर्यभक्तिस्थिरास्तु गोपालयशः प्रशस्तिः ॥ ११ ॥ इतिश्री सूर्यकुण्डम् ॥ छ ॥ स्थापितानेकभूपालः कृपालुर्ज्ञान निर्मलः । मेघमंत्रीश्वरोभा
(८) [ तिधर्मध्यानेषु ] निश्चलः ॥ १ ॥ लक्ष्मीः श्री पुञ्जराजस्य मुञ्जराजा ग्रजन्मनः ॥ दातुस्तुलादिदानानान्धर्मेण परिवर्धते ॥ २ श्री कनक प्रभसूरौ गुरुभक्तो । भिल्लमाल वटगच्छे बहरागोपाल श्री योगेश्वरी गोत्रजा श्रिये तेस्तु ॥ ३ बोहरागोत्रे गोपाल... गताङ्क में तारापुर मंदिर के शिलालेख के विषय में जो " लेख का परिचय " का विषय छपा है उसमें सूर्यकुंड का उल्लेख किया है, और शिलालेख की नकल आगामी अंकमें प्रकाशित करने का जाहिर किया था । उक्त शिलालेख की नकल पाठकों की सेवा में पेश है । यह शिलालेख लंबा साठ ईंच चौडा ११ इंचके पत्थरपेकी ४४ इंच की लंबाई में सदर लेख है व बाकी १६ इंच पैकी दोनो तरफ आठ आठ ईंच नकशीदार बेल बूटे हैं । यह आठ पंक्तियों में लिखा है । यह शिला सूर्य के सन्मुख रहने से इसके अक्षर कहीं कहीं से चटक गये हैं । इस कुंड में उतरने के साथ ही दाहिनी दीवाल में उक्त शिला लगी हुई है और सीढी उतरने के सन्मुख भागके पश्चिमीय दीवाल में एक ताख बना हुवा है उसके अंदर हलके गुलाबी रंगके पत्थर पर फारसी का लेश खुदा हुवा लगा है । फारसी लीपी की अनभिज्ञता होने से आगे समय पर प्रकाशित करने का ध्यान दिया जायगा । यह कुंड अंदर से अष्ट कोण के आकार में बंधा हुवा होकर पानी भी हमेशा भरा रहता है। दक्षिण तरफ की दीवाल का भाग नष्ट हो गया है । इसकी सारी तामीर थोडे खर्चे से हो सकती है । उक्त सिलालेख की नकल हमने ता. २१-१-३७ को जाकर ली, लेकिन अक्षरों के चटकने के कारण अशुद्धियां रही । पश्चात् यतिवर्य माणकचंदजी इन्दौर निवासी कृत पुस्तक के पृष्ठ ८० से ८२ में उक्त लेख देखने में आया, जिसका अक्षरशः उतारा लिया गया ।
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