Book Title: Jain Satyaprakash 1937 09 10 SrNo 26 27
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 49
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समीक्षाभ्रमाविष्करण (याने दिगंबर मतानुयायी अजितकुमार शास्त्रीए "श्वेतांबर मत समीक्षा "मां आळेखेल प्रश्ननो प्रत्युत्तर) लेखक:-आचार्य महाराज श्रीमद् विजयलावण्यसूरिजी (गतांकथी चालु) साधु आहार पान कितने बार करे? वली निरवद्य भाषानी प्रवृत्तिवाला छतां जो मुहपत्ति न माने तो मिथ्यात्वी बने; वगेरे वगेरे दोषो जोवा माटे “दिगंबरोनी उत्पत्ति" शीवक लेख जोवानी भलामण छे. कल्पसूत्रना समाचारी विभागमां श्रुतकेवली भगवान् भद्रबाहुस्वामी फरमावे छे केः “चोमासु रहेल, नित्य एकान्तरे उपवास करनार मुनि पारणाना दिवसे सवारना गृहस्थने त्यां आहारपाणी वहोरवा जइ शके छे. लावेल छाश वगेरे वापरी पात्र चोक्खां करे, आटलाथी निर्वाह चाली शके तो फेर आहारपाणी माटे न जाय. कदाच आटलाथी निर्वाह न थइ शके तो बीजी वार पण जइ शके छे. "चोमासु रहेल, नित्य एकान्तरे छठ करनार मुनि पारणाने दिवसे गृहस्थने त्यां आहारपाणी वहोरवा माटे बे वार जइ शके छे. चोमासु रहेल, नित्य एकांतरे अठम करनार मुनि पारणाने दिवसे गृहस्थने त्यां आहारपाणी वहोरवा त्रण वार जइ शके छे. __“चोमासु रहेल, नित्य एकांतरे विप्रकृष्ट तप [अठमनी उपरनो तप] करनार मुनि पारणाना दिवसे गृहस्थने त्यां आहारपाणी वहोरवा माटे ज्यारे ज्यारे आहारनी रुचि थाय त्यारे त्यारे जइ शके छे।" आ उपरना पाठ पर दिगम्बर लेखके करेल आक्षेपः “सारांश यह कि जितने उपवास करे उतनेही वार पारणाके दिन भोजन कर सकता है। इस हिसाबसे यदि किसीने ५ उपवास किये हों तो पारणाके दिन डेढ डेढ घंटे पीछे और जिसने १२ किये हों वह घंटे घंटे भर पीछे दिनभर खाता पीता रहे। एक साथ तीस तीस उपवास भी बहुतसे साधु या श्रावक भाद्रपदमें किया करते हैं, तो वे कल्पसूत्रके पूर्वोक्त लिखे अनुसार दिनमें ३० बार याने दो दो घंटेमें पांच पांच बार बराबर खातेपीते चले जावें।" आना प्रत्युत्तरमा जणाववान के-जेटला उपवास तेटली वार पारणा ने दिन आहार लेवाय आवो जे लेखके नियम बांध्यो ते अनेकांतिक होवाथी व्याजबी नथी, कारणके, कायम एकाशन करनारने उपवास For Private And Personal Use Only

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