Book Title: Jain Satyaprakash 1937 09 10 SrNo 26 27
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [७८] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [443 पूर्ववित् परंपरा (श्वेताम्बर) में हुए हैं और उनसे ज्ञान पाकर आ० भूतबलिजी (शिखमूतिजी)ने दि० शास्त्र रचे हैं । २ किसी दिगम्बर ग्रन्थने आ० धरसेत मा० भद्रबाहु के शिष्य थे ऐसा उल्लेख नहीं हैं, जबकि पंडितजीने आ० धरसेनको आ० भद्रबाहु के ही शिष्य माने हैं। ३ धवलादि का रचनाकाल शक सं० ७२९ है, इनको पढ़कर आ० नेमिचन्द्रजीने गोम्मटसारादि बनाये ऐसा पंडितजी मानते हैं। किन्तु जांचकरने से पता चलता है कि आ० नेमिचन्द्रजीका सत्तासमय शक सं० ६०० के करीबमें आता है । देखिए “ कल्क्यब्दे षट्शताख्ये वितनुतविभवसंवत्सरे मासिचैत्रे, पञ्चम्यां शुक्लपक्षे दिनमणिदिवसे कुम्भलग्ने सुयोगे ॥ सौभाग्ये मस्तनाम्नि प्रकटितभगणे सुप्रशस्तां चकार, श्रीमच्चामुंडराजो बेल्गुलनगरे गोमटेशप्रतिष्ठां ॥” -बाहुबलि चरित्र श्लो० ५५ । -श्री जवाहरलाल शास्त्री लिखित "बृहद्रव्यसंग्रह" प्रस्तावना पृ०३ याने शक सं० ६००में गोम्मटेशकी प्रतिष्ठा हुई । यहां आ० नेमिचन्द्र उपस्थित थे । अतः पं मनोहरलालजीने इतिहास लिखा है उसमें कुछ सत्य है कुछ असत्य । इतना सत्य है कि-मा० भूतबलिने षखंड आगम बनाया और उसके ही अनुसार धवलादि बने । जयधवलाकी अंतिम प्रशस्ति इस प्रकार है इति श्री वीरसेनीया, टीका सूत्रार्थदर्शिनी । मटग्रामपुरे श्रीमद्गुर्जरार्यानुपालिते ॥ फाल्गुने मासि पूर्वाह्ने दशम्यां शुक्लपक्षके । प्रवर्धमानपूजायां, नन्दीश्वरमहोत्सवे ॥ अमोघवर्षराजेन्द्र, प्राज्यराज्य गुणोदया । निष्ठितप्रचयं याया-दाकल्पान्तमनल्पिका ॥ षष्ठिरेव सहस्राणि, ग्रंथानां परिमाणतः । श्लोकेनानुष्टुभेनात्र, निर्दिष्टान्यनुपूर्वशः ॥ विभक्तिः प्रथमः स्कंधो, द्वितीयः संक्रमोदयः । उपयोगस्तु शेषास्तु, तृतीयस्कंध इष्यते ॥ एकानपष्ठिसमधिकसप्त शताब्देषु (७२९) शकनरेन्द्रस्य । समतीतेषु समाता, जयधवला प्राभूत-व्याख्या ॥ गाथा सूत्राणि सूत्राणि, चूर्णिमूत्रं च वार्तिक । टीका श्रीवीरसेनीयाऽशेषा पद्धतिपंचिका ॥ For Private And Personal Use Only

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