Book Title: Jain Satyaprakash 1936 10 SrNo 15 Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad View full book textPage 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ શ્વિન विष्पो सिरिवसुभूई-जस्स पियामगहगोब्बरे गामे ॥ गोयमगुत्तखभाण-जाओ जो जिट्टणक्खत्ते ॥ ६॥ पढमं वरसंठाणं-संहणणं जम्स तारिसं परमं ॥ सत्तकरुस्सेहतj-तमिंदभूई सया वंदे ॥ ७ ॥ चउदसविजाकुसलो-पणसयसीसे य जो भणावेए ॥ वाइसहाए विइओ-वायविहाणे सुदकरवमई ॥ ८ ॥ पण्णासवरिसमाणो-गिहिपरिआओ य जस्स परिकहिओ ॥ जो मज्झिमपावाए-समागओ जण्णकजढं ॥ ९ ॥ वइसाहे वरमासे--सियपक्विकारसीइ पुच्चते ॥ . महसेणवणुज्जाणे-दिक्वा समओ सुहो जस्स ।। १० ॥ णियवेयपयत्थाणं-सव्वष्णुविसिट्टवीरवयणेणं ।। सोचा विणिच्छियत्थे-पव्वइओ सीसपरिवरिओ ॥ ११ ॥ जो छट्टछट्टणिययं-तवं कुणंतो वि रूबलविलो ॥ सज्झाणमंडियंगं-तं गणहरगोयमं वंदे ॥ १२ ॥ अटवीसइलद्धिगयं-जुगप्पहाणं पहाणचउणाणिं । गुणगणरयणणिहाणं-गणहरसिरिगोयमं वंदे ॥ १३ ।। चउदससहसमुणीणं-जो पढमो वारसंगहरविउहो ।। कारुण्णपुण्णहियओ-तं गणहरगोयमं वंदे ।। १४ ।। जेणं दिण्णा दिक्खा-पयच्छए केवलं मुणिंदाणं ।। अञ्चब्भुयमाहप्पं-तं गणहरगोयमं वंदे ॥ १५ ॥ तीसं वासाइ कया-अणण्णभावेण जेण गुरुभनी ।। कणयरुई विष्णवरं-तं गणहरगोयमं वंदे ॥ १६ ॥ जस्स य जीवणचरियं-अणुकरणिजं मुर्णिदसंवेणं ।। पत्थाणज्झाणगयं-तं गणहरगोयमं वंदे ॥ १७ ।। णियलद्धीइ करेजा-अट्ठावयपव्वयस्स जो जत्नं ।। तम्मि भवे सो होज्जा-सिद्धो इय वीरवयणाओ ॥ १८ ॥ विहिया जत्ताजेणं-तहेव भत्तिप्पमोयकलिएणं ।। एवं सिवकयसढें-तं गणहरगोयमं वंदे ॥ १९ ॥ For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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