Book Title: Jain Satyaprakash 1936 10 SrNo 15
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
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૧૯૯૨
સમીક્ષાશ્રમાવિષ્કરણ
[ षड्भिः स्थानः श्रमणो निर्गन्थ आहार- न आपे तथा तमाम दुःखो आनी नजिकमां माहारयन्नातिकामति । तद्यथा । वेदनावैयावृत्ये आवीने रहे छे । आ क्षुधाजन्य वेदनानी इथं च संयमार्थम् । तथा प्राणवृत्यै षष्ठं शांनिने माटे मुनि आहार ग्रहण करे । पुनर्धर्मचिन्तायै]
बीजु कारण वेयावच्च बताव्युं । भुख्या भावार्थ- छ कारणथी आहार करता रहेवाथी वेयावच न थइ शकतुं होय तो श्रमण निर्गन्थ जिनेश्वरदेवनी आज्ञानु उल्लंघन
वेयावच्च करवाने माटे पण आहार ग्रहण करे।
गोन करता नथी, अर्थात् आज्ञाना आराधक छे ।
जेने माटे कहेल छे केतेल कारणो आ प्रमाणे ... वेदना २
गलइ बलं उच्छाहो अवेइ सिढिलेई वेयावच ३ ईर्या ४ संगम ५ प्राणवृत्ति ६ ।
गयलवावार । नासह सत्तं अरई विवड्ढए धर्मचिन्ता । आमां प्रथम वेदना कारण कहूं।
असगरहियस्स ॥१॥ वेदना पटले भुन्या रहेबाथी थती पीना ।
। गलति बलमुत्साहोऽपैति शिथिलयति पने माटे का छे केपन्थसमा नन्थि जग दालिदसमी य
सकलल्यापारान् । नश्यति सत्त्वमरतिर्विवर्धते
ऽशनहितस्य ॥ १॥] परिभवो नथि। मरणसमं नशि भयं बहा
___ भावार्थ----जेणे भोजन न कर्य होय समा वेयणा नन्थि ॥१॥ । पान्थ वममा नास्ति जग दारिद्रयसभा
नेनुं बळ गळी जाय छे, उत्साह जतो रहे छे,
वधी प्रवृत्ति शिथिल थई जाय छे, सत्त्व नाश परिभवो नास्ति । मरणसमं नाम्नि भयं क्षुत्समा वेदना नास्ति ॥ १ ॥
पामे छे अने दुःख वधे छ । ___ भावार्थ---मुसाफरी जेवी वृद्धावस्था
बीजं ईर्या कारण कयु । भुख्या रहेवाथी नथी, दरिद्रावस्था समान पराजय नथी, मृत्यु
ईसमिति जो न पाली शकाती होय तो ईर्यासमान भय नथी अने श्रधा गमान वेदना समितिना निमित्ते पण आहार करे । चो, नथी ।
कारण संयम कयुं । भुख्या रहेवाथी पडिलेहतं नत्थि जं न बाहइ तिलतसमित्तं पि णादिक संयमक्रिया न करी शकाती होय तो एत्थ कायस्स । सन्निझं सम्बदहाइ देंति संयमने माटे पण आहार ग्रहण करे । पांचमुं आहाररहियम्स ॥ २ ॥
कारण प्राणवृत्ति जणावी। भुख्या रहेवाथी प्राण [ तन्नास्ति यन्न बाधते तिलतुषगात्रमप्यत्र एटले श्वासोच्छासादिक अथवा बळ जो हीन कायम् । सान्निध्य सर्वदुःखानि ददति यतुं होय तो पण प्राण टकावी राखवा माटे आहाररहितस्य ॥ १॥]
आहार करे। छटुं कारण धर्मचिन्ता बतावी। भावार्थ--- तलना फोतरा जेटली पण भुख्या रहेबाथी वाचनादिक स्वाध्याय न थई एवी वस्तु अहीं नथी के जे आहारहितने पीडा शकतुं होय तो तेने माटे पण मुनि आहार
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