Book Title: Jain Satyaprakash 1936 10 SrNo 15
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org दिगम्बर शास्त्र कैसे बनें ? लेखक - मुनिराज श्री दर्शनविजयजी Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकरण ८ - श्री सिद्धसेन दिवाकर ( गतांक से क्रमशः ) "" कोटिक गण के आय आचार्य सुस्थितसूरि और सुप्रतिबद्ध सूरि जिन की ध्यानभूमि व स्वर्गगमन भूमि प्रसिद्ध तीर्थ उदयगिरि और कुमारगिरि हैं उनके शिष्य, काश्यपगोत्रीय, विद्याधर गोवाल से करीब वीर निर्वाण की पांचवी शताब्दि के प्रारंभ में विद्याधरी शाखा " का प्रादुर्भाव हुआ। कुछ समय व्यतीत होनेके बाद उसीका नाम “विद्याधरगच्छ हुआ । इस विद्याधर गच्छ में श्री वृद्धवादिसूरि के कुमुदचन्द्र नामक एक शिष्य थे, जो आचार्य पद से विभूषित होने के पश्चात् सिद्धसेन दिवाकर के नामसे ख्यात हुए । इन सिद्धसेन दिवाकर ने सन्मतितर्कप्रकरण, न्यायावतार, द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका, कल्याणमंदिर स्तोत्र आदि शास्त्रग्रंथों की रचना की, जो श्वेतांबर समाज में आप्त-वचन जैसे माने जाते हैं । वेतांबरीय आचार्यों ने उनके ग्रंथों पर अति विशद वृत्तियाँ निर्माण की हैं । विक्रम राजा की राजसभा के नव रत्नों में आचार्य सिद्धसेन दिवाकर "क्षपणक" के नामसे निर्दिष्ट हैं । देखिए धन्वन्तरि- (- क्षपणका-मरसिंह शङ्क- वेतालभद्र घटखर्पर कालिदासाः । ख्यातो वराहमिहिरो नृपतेः सभायां रत्नानि वै वररुचिर्नव विक्रमस्य || अर्थात धन्वन्तरी, क्षपणक, अमरसिंह, शंकु वेतालभट्ट, घटखर्पर, कालिदास, वराहमिहिर और वररुचिः ये विक्रमकी सभा के नौ रत्न हैं । जिनागम परिभाषा में तपस्या के लिए क्षपण शब्द का व्यवहार किया जाता है, जैसे मासक्षमण पक्षक्षण ( पासखमण ) आदि । "" 46 पारंचित तपवाले साधु बहुधा " क्षपणक के उपनाम से सम्बोधित किये जाते हैं । अतः जैन शास्त्रों में भिन्न भिन्न स्थान पर कालगखवणा, सागरखवणा, सिंहगुहाखवणा ( उत्तराध्ययन सूत्र, नियुक्ति ): रक्स्विय खवणा ( आवश्यक नियुक्ति, गाथा ७७६ ). मुंडपाद क्षमण और घोषनंदी क्षमण ( तत्वार्थभाष्य कारिका पशक्ति ) इत्यादि महातपस्वीओ के नाम उल्लिखित हैं। आवश्यक नियुक्ति, गाथा ७२९ की हरिभद्रसूरि कृत टीकामें "स्वमण" का अर्थ " तपस्वी " लिखा है । सारांश यह है कि क्षपणक, क्षपण. क्षमण, खवण: ये सभी तपस्वी जैन श्रमणों के पर्याय वाचक नाम हैं । For Private And Personal Use Only

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