Book Title: Jain Satyaprakash 1936 10 SrNo 15
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
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૧૯૯૨ સાધુમર્યાદાપક
૧૧૩ १३. एक समाचागेना साधु किवारइ बीजद उपाश्रय रह्या हुइ तउ तीए गीतार्थ समीपइ आवी वांदणा देइ सियातर ही(पी)ड पूछी वहिरवा जाइबुं ।
१४. दिवसमाहि आठ थुईण देव वांदिवा।
१५. दिनप्रति साधुनइ २५ सई गुण्या जोईयइ, न गुणइ तर जघन्यइ एक सहश्र गुणिवउं ।
१६. परिग्रह वस्तु कांबला ठामडा पृटइं बांधी न मूंकिवा, चालतां डीलइ ऊपाटइ, गृहस्थ पाहइ न उपाडिवउ ।
१७. वरस माहे एक धोवणी बीजी धोवणी नहीं। १८. पोसाल माहे किंगही न रहिवउ । १५. पोसालइ किणही भणिवा न जाइवउ । २०. सहश्र प्रमाण ग्रंथ अधिकुं न लिखाइवउ । २१. द्रव्य आपी किणही भट्ट पासइ न भणिQ । २२. जिणइं गामइं चउमासि रहइ तिहांथा पडवा दिनइ पारणउ करी पांगरिवउं ।
२३. जिहां चतुमासि रह्या हुई तिहां तिणइ साधइं २ मास लगइ वस्त्र वहिरवउ नही ।
२४. अकाल संज्ञा हुइ तर आंबिल करिवउं ।
२५. एकासणउ पच्चक्खाण जावजीव करिवउ, छ? नइ पारणइ जिम गुरु कहइ तिम करिवउ ।
२६. पारिद्वावणीयागार किणइ न साचिवउं ।
२७. आठमि चउदसि पांचमि उपवास करिबउ, कारणइ किवारइ न करइ तट मास दिवस माहि पांच उपवास करिवा ।
२८. आठमि चउदसि विहार न करिवउ । २९. एक निवी माहि त्रीस निवीता माहि एके निवीतउ न लेइवउ । ३०. चउरासी गछ माहिलउ माहात्मा गुरुना कह्या पाखइ किणही न राखिq । ३१. गुरुनइ अणपूछ्यइ नवी प्ररूपगा नवी समाचारी न करवी ।
३२. ए बोल न पालइ तेहनइ गुरु गीतार्थ श्रीसंघह ते पाहि पालाविवा । श्री विजयदानसूरि, उपाध्याय श्री हर्षसागर गणि, पं० श्रुतसमुद्र गणि, पं० सीहविमलगणि, उदयवर्द्धन गणि, श्रीपति गणि। एटला जण टाली दीक्षा ल्यइ तेहनइ वेष पहिराविवउ नही।
३३. ऋषि किणइही नवउ लूगडउ न लेइवउं, सरवर कोरउ वहिरवउ कोरा माहे गउडिआ व साल किणही न लेइवउ । गीतार्थनइ मोकलउ ।
-१७वीं शताब्दि का लिखा हुआ एक पत्र, जो हमारे संग्रह में है।
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