Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Khand 02 Ank 01 to 02
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 171
________________ अंक २] श्री महावीरनो समय-निर्णय [१२७ एटले 'चार यमवाळो' 14 कहेलो छे. परंतु खरी रीते ए महावीरनो धर्म नथी. ए तो तेमनी पूर्वे थएला पार्श्व नामना तीर्थकरनो प्ररूपेलो धर्म छे. कारण के महावीरे तो पोताना धर्मावलंबीओ माटे पांच व्रतनुं विधान कर्यु हतु. अने खुद जैनोमां पण "महावतो" नी संख्याना संबंधमां वास्तविक रीते गुंचवण होय तेम जोवामां आवे छे. 15 सामञफलसुत्त आदि पालीग्रंथोनी आवी रीते वर्णन करवामां भूल थएली हती एम मानवानुं कारण नथी; कारण के आ वर्णन बद्ध अने महावीर परस्पर वधारे निकटना संबंधमां आव्या ते सम परिस्थिति हती तेनो चितार मात्र छे. अने आ उपरथी आपणे कदाच अनुमान करी शकीए के महावीरे, तेमनो बुद्ध साथे कांईक संबंध थयो हतो ते वखते एटले थोडोक वखत बाद पोताना पांच महाव्रतनो सिद्धांत छेवटरूपे नक्की को हतो.. ___ आ उपरांत बौद्ध धर्मना ग्रंथोमां मुख्य राजा तरीके मात्र बिंबिसारनुं वर्णन थएलु छे, अजातशत्रुनो उल्लेख वधारे प्रमाणमां थएलो जोवामां आवतो नथी. आ उपरथी ए हकीकतने टेको मळे छे के अजातशत्रुना राज्यनी शरुआत थई त्यार आगमच बुद्धनुं जीवन पोताना अघसान संमुख थवा लाग्यु हतुं, अर्थात् तेमनुं जीवन समाप्त थवानी तैयारीमा हतु. परंतु जैनधर्मग्रंथोमां महावीरना जीवनकालमां कूणिके घणो मोटो भाग भजवेलो छ अने खचीत तेनुं वर्णन वधारे नहिं तो निदान तेना पिताना जेटलुं तो थएलुं छे ज. बौद्धो ज्यारे जणावे छे के तेमना तीर्थकर बुद्ध अने आ राजाओनो परस्पर मेळाप मगधनी जुनी राजधानी राजगृहमां थतो हतो त्यारे जैनग्रंथोमा स्थले स्थले तेमना तीर्थकर अने कूणिकना मेळापनी भूभी तरीके कूणिकनी नवी राजधानी चंपाने बताववामां आवी छे. आ बाबत पण खरेखर अजातशत्रुना राज्यना उत्तरकाळनी द्योतक छे. _हवे हुं मारी तपासनी अंते आवी पहोंच्यो छु. मारे न्यायदृष्टिए जणावी देवू जोईए के आ लेखमां लखेली सघळी बाबत एक या बीजा रूपमां आ लेखनी पहेलांज वर्णित थई गएली छे. परंतु आ प्रकारनुं पिष्टपेषण, आ जातनी सामान्य रूपनी अत्यारनी सघळी शोधोने साधारण छे, अने तेथी ए बाबतमांमने बीलकुल दिलगीरी थती नथी. अत्यार सुधीमां मळी आवेली सघळी हकीकतोनु भंडोळ एकवार फरीथी, वाचको समक्ष भूकवानुं मने घणुंज अनुकूल लाग्युं छे, कारण के ए द्वारा तेओ आना संबंधमां वधारे योग्य अभिप्राय-पछी ते अभिप्राय उपरोक्त अभिप्रायने अनुकूल थाय के प्रतिकूल थाय-बांधवा शक्तिमान थशे. अने मारु खसुस मानQ छे के महावीरना समयनिर्णयनो प्रश्न घणोज महत्त्वनो छे अनेतेटलामाटे जेटलां वधारे साधनो मळे तेटलां बधां साधनो द्वारा विवेचन करवा योग्य छे. जो हूं एटली मोटी आशा न राखी शकुंके सघळा लेखको मारा अनुमानने संमत थशे, के जे अनुमान प्रो. जेकोबीए लांबा काळ उपर सूचवेलुं हतुं अने जेने में मात्र अन्य नवी दलीलो द्वारा मजबुत करवा ज प्रयत्न करेलो छे, तो पण हुं एटली आशा तो जरुर राखी शकुंछु के उपरोक्त विवेचन, घणा लांबा समयथी उपेक्षापात्र बनेला एवा आ अति महत्वना विषय तरफ तेओ पोतानुं ध्यान दोरशे. मने नहि मळी शकेली एवी घणी नवी माहीतिओ विद्वानोने उपलब्ध थशे अने आ गंभीर प्रश्ननो कोई नवो चूकादो जन्म पामे ए पण बनवू संभवित छे. अत्यारे तो आनाथी अन्य 14. सरखावो-उत्तराध्ययन सूत्र २३, १२ मां कहेला, ' चाउज्जामो धम्मा' 15. सरखावो-हेस्टींग्सनी इन्साइकलोपीडिया, पु. १, पृ. २६४ मां डॉ. होर्नलनो लेख. Aho I Shrutgyanam

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