Book Title: Jain Katha Sangraha Part 06
Author(s): Kalyanbodhivijay, 
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 235
________________ ॥५॥ तत्थुज्जाणे जक्खिणि भद्दमुही नाम निवसए निच्चं । बहुसालरुक्खवङ्दुमअहठिअभवणम्मि कयवासा॥१५॥ केवलकमलाकलियं संसयहरण सुलोअणं सुगुरुं। पणमिअभत्तिभरेणं पुच्छइ सा जक्खिणी एवं ॥१६॥ भयवं! पुव्वभवे हं माणवई नाम माणवी आसि। पाणपिया परिभुग्गा सुवेलवेलंधरसुरस्स ॥१७॥ आउखए इत्थ वणे भद्दमुही नाम जखिणी जाया। भत्ता पुण मज्झ कहिं उप्पन्नो नाह! आइससु?॥१८॥ तओ सुलोअणो नाम केवली महुरवाणीए भण; -- ।श्रीकुर्मापुत्रकथानकं। श्रीजैन कथासंग्रहः तत्रोद्याने यक्षी भद्रमुखी नाम निवसति नित्यम् । बहुशालवृक्षवद्रुमाग्यःस्थितभवने कृतवासा॥१५॥ केवलकमलाकलितं संशयहरणं सुलोचनं सुगुरुम् । प्रणम्य भक्तिभरण पृच्छति सा यक्ष्येवम् ॥१६॥ भगवन् ! पूर्वभवेऽहं मानवती नाम मानव्यासम् । प्राणप्रिया परिभोग्या सुवेलवेलन्धरसुरस्य ॥१०॥ आयुःक्षयेऽत्र बने भद्रमुखी नाम यक्षी जाता। भर्ता पुनर्मम कुत्रोत्पन्नो नाथ! आदिश ? ॥१८॥ ततः सुलोचनो नाम केवली मधुरवाण्या भणति: ॥५॥

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