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अध्याय 31 ]
लघुचित्र
अंकित की गयी हैं । वृक्षों को पतले तनों से युक्त चित्रित किया गया है जिनकी लहरदार शाखाओं के घुमाव चित्रों के अंदर की ओर प्रवेश करते हुए दर्शाये गये हैं। पहाड़ों को रंग-बिरंगी चट्टानों के ढेर के रूप में अंकित किया गया है जिनमें से वृक्ष निकले हुए दर्शाये गये हैं ( रंगीन चित्र ३० क ) । स्थापत्य को जालीदार फलक-युक्त संरचनाओं के रूपाकारों में अथवा बहुतल भवनों के रूप में चित्रित किया गया है (चित्र २७६ क ) । भवन की प्रांतरिक साज-सज्जा के उपादानों में छत्राकार वितान तथा घुमावदार पायों के पलंग अंकित किये गये हैं ।
पूर्वोक्त पाण्डुलिपि की भाँति इस पाण्डुलिपि के चित्र अपने चित्र संयोजन, रंग-योजना तथा मानव आकृतियों एवं दृश्य - चित्रों के अंकन में उन मान्यताओं का निर्वाह करते हैं जो पंद्रहवी शताब्दी में पश्चिम भारतीय चित्रकला में प्रचलित थीं ( रंगीन चित्र ३० क, ख, की रंगीन चित्र २७ से तुलना कीजिए) । उस शैली की कुछ विशेषताएँ हैं—- देवी का मूर्तिपरक चित्रण ( रंगीन चित्र ३० ख ), एक मनुष्य का प्रसाधन- दृश्य जिसमें उसके लंबे बालों को सेविका द्वारा काढ़ते हुए दिखाया गया है ( चित्र २७६ ख ), तथा एक विवाह मण्डप | एकमात्र असामान्य अभिप्राय का अंकन है एक बहुतल वाला भवन जो चित्रित किया गया है ।
इस पाण्डुलिपि के किनारों की सज्जा में पुष्पादि - लता - वल्लरियों, ज्यामितिक रूपाकारों और आलंकारिक अभिप्रायों का उपयोग हुआ है जिनकी प्रेरणा फारसी कालीनों तथा अलंकृत फलकों से ग्रहण की गयी है (चित्र २७७ क ) । कुछ चित्र - फलकों में लहरदार लता - वल्लरियों में गिलहरियों एवं पक्षियों का अलंकृत वृक्षों का तथा नृत्यरत नारी एवं संगीतज्ञों की आकृतियों का आकर्षक अंकन है (चित्र २७७ ख ) । इसी प्रकार पहलवानों और पशुओं के समूह का भी अंकन किया गया है । पृष्ठ के किनारों के इन अलंकरणों की सन् १४७२ में चित्रित उत्तराध्ययन सूत्र 2 तथा मुनि हंसविजयजी की कल्प-सूत्र' की पाण्डुलिपि के किनारों के अलंकरणों से प्रत्यक्ष तुलना की जा सकती है । यद्यपि यह पाण्डुलिपि देवासा-नो पाडो भण्डार की कल्पसूत्र - पाण्डुलिपि से पर्याप्त समानताएँ रखती है तथापि यह भी स्पष्ट है कि इसके किनारों के अलंकरण में न तो काल्पनिक अंकन ही है और न उत्तरवर्ती
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रंगीन चित्र 30 ख की तुलना मजूमदार (एम नार) 'अलिएस्ट देवीमहात्म्य मिनिएचर्स विद स्पेशल रेफरेंस टू शक्ति वशिप इन गुजरात', जर्नल ऑफ़ दि इण्डियन सोसाइटी ऑफ़ ओरिएण्टल आर्ट, 6. 1938, चित्र 28 और रेखाचित्र 3-4 के साथ कीजिए तथा चित्र 276 ख की ब्राउन, पूर्वोक्त, 1934, चित्र 12 के साथ तुलना कीजिए.
2 ब्राउन, पूर्वोक्त, 1941, रेखाचित्र 27, 32, 76, 91, 127, 137, 141, 148, 149, 150, यहाँ पर तिथि का उल्लेख नहीं है. इसके लिए तिथि का निर्धारण खण्डालावाला द्वारा 'लीव्स फ्रॉम राजस्थान, मार्ग, 4, सं. 3 में किया गया है.
मोतीचंद्र, वही, 1949 रेखाचित्र 139, 142-46.
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