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अध्याय 37 ]
विदेशों के संग्रहालय
चिह्न के समान हैं। लंबे कान, तीव्र भौंहें एवं नाक, गुण्डाकार अंगुलियाँ, मानव-प्राकृतियों का सुंदर प्रतिरूपण तथा प्रालंकारिक अभिकल्पनाएँ इस विशाल प्रतिमा में इस दक्षता से अंकित की गयी हैं कि यह सुदक्ष अंकन हमें राजस्थान के पल्लू नामक स्थान से प्राप्त सरस्वती की उन उल्लेखनीय प्रतिमानों का स्मरण कराता है जो नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय' तथा बीकानेर संग्रहालय में प्रदर्शित
13 इस प्रतिमा की पृष्ठभूमि के चौखटे पर गंधर्वों एवं हाथियों पर सवार प्राकृतियों के प्रतिरिक्त अन्य अनेक मानव आकृतियाँ उत्कीर्ण हैं 14 इस प्रतिमा पर विक्रम संवत् १२२४ (सन् १९६८ का तिथि-युक्त एक अभिलेख भी अंकित है ।
इस संग्रहालय में चालुक्यकालीन तीर्थंकरों की दो उल्लेखनीय प्रतिमाएँ भी सुरक्षित हैं, जिनमें से पहली प्रतिमा में पार्श्वनाथ को कायोत्सर्ग - मुद्रा में खड़े हुए दर्शाया गया है। पार्श्वनाथ सपं की कुण्डलियों के सामने खड़े हैं और सर्प के फण उनके शीर्ष के ऊपर हैं ( चित्र ३२३ क ) । उनका लांछन सर्प पादपीठ के सम्मुख भाग पर अंकित है । इस प्रतिमा को लगभग बारहवीं शताब्दी की चालुक्यकालीन कला की कृति माना जा सकता है। पार्श्वनाथ की दूसरी प्रतिमा में उन्हें पहले की भांति सत-फणी नाग छत्र के नीचे खड़े हुए दर्शाया गया है (चित्र ३२३ ख ), इनके शीर्ष के समीप पार्श्व में दोनों श्रोर चमरधारी सेवक खड़े हैं तथा नाग-फण के ऊपर तिहरे छत्र हैं । तीर्थंकर के पैरों के समीप दोनों ओर यक्ष धरणेंद्र एवं यक्षी पद्मावती अपनी भुजानों में अंकुश एवं पाश आदि धारण किये हुए हैं । यक्ष-यक्षी को नाग छत्र के नीचे बैठे हुए दर्शाया गया है। प्रतिमा के पादपीठ के सम्मुख - भाग पर एक अभिलेख अंकित है जिसके अनुसार जैन संप्रदाय के उत्पीड़न-काल के उपरांत बारहवीं शताब्दी में गुलबर्गा स्थित पार्श्वनाथ मंदिर के पुनरुद्धार के समय यह प्रतिमा मंदिर में स्थापित कराने के लिए निर्मित करायी गयी ।
इस संग्रहालय में अंबिका यक्षी की भी एक प्रतिमा है जो पाषाण निर्मित है ( चित्र ३२४) । यह प्रतिमा उड़ीसा से प्राप्त की गयी है । अंबिका को दोहरे पद्म-पादपीठ पर विश्राम - मुद्रा में बैठे हुए दर्शाया गया है। उसने अपना बायाँ पैर दोहरा मोड़कर तथा दायाँ पैर आराम से सीधा फैलाकर
1 शर्मा (दशरथ) पर्ली चौहान डायनेस्टीज 1959. दिल्ली. पृ 228 के सामने का चित्र .
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शर्मा ( ब्रजेन्द्र नाथ ). 'सम मेडीएवल स्कल्पचर्स फ़ॉम राजस्थान इन द नेशनल म्यूज़ियम, रूपलेखा, नई दिल्ली, 35, 1 एवं 2, पृ 31, चित्र 1.
3
श्रीवास्तव ( वी एस). कैटेलॉग एण्ड गाइड टू गंगा गोल्डन जुबली म्यूजियम, बीकानेर. 1960-61 13. चित्र 3. ( उपर्युक्त चित्र 154 भी देखें - संपादक.)
4 बारहवीं शताब्दी के चाहमानकालीन, राजस्थान से एक विशाल तीर्थंकर प्रतिमा की पृष्ठभूमि के एक चौखटे का चित्र इस लेख के लेखक ने जर्नल प्रॉफ़ दि घोरिएंटल इंस्टीट्यूट, बड़ौदा, 19, पृ 275-78, तथा चित्र 'जैन ब्रोंजेज इन नेशनल म्यूजियम, नई दिल्ली' शीर्षक अपने लेख के साथ प्रकाशित कराया था. यह प्रतिमा इस समय प्राप्य नहीं है.
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