Book Title: Jain Kala evam Sthapatya Part 3
Author(s): Lakshmichandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 354
________________ संग्रहालयों में कलाकृतियाँ [भाग 10 में पार्श्वनाथ को पद्मासन-मुद्रा में दर्शाया है। उनके पीछे कुण्डलीबद्ध नाग खड़ा हुआ है जो अपने फण-छत्र से उनको छाया प्रदान कर रहा है। तीर्थंकर के वक्ष पर श्री-वत्स चिह्न अंकित है । उनके सिर के पीछे भामण्डल है जिसके ऊपर तिहरा छत्र है। छत्र के ऊपर दुंदभि का प्रतीक है तथा छत्र के पार्श्व में हाथी अंकित हैं। तीर्थंकर के पार्श्व में हाथी पर खड़े हुए उनके सेवक इंद्र प्रदर्शित हैं जिनके सिरों पर नाग-फण छत्र हैं। पादपीठ पर धर्मचक्र, उपासक-गण तथा सिंह अंकित हैं। अहमदपुर से प्राप्त प्रतिमा (११६; ऊंचाई १.४५ मी०) में पार्श्वनाथ को नाग-फण छत्र के नीचे कायोत्सर्ग-मुद्रा में दिखाया गया है। ग्वालियर के किले से प्राप्त पार्श्वनाथ की तीसरी प्रतिमा (१३०; ऊँचाई ७८ सें० मी०) अभिलेख-युक्त है जिसके लिए ग्यारहवीं-बारहवीं शताब्दी का समय निर्धारित किया जा सकता है। इस प्रतिमा के परिकर में अंकित तीर्थंकरों की लघु आकृतियों से ज्ञात होता है यह प्रतिमा एक चतुर्विंशति-पट्ट थी। इस प्रतिमा के पादपीठ पर अपने वाहन कुक्कुर सहित क्षेत्रपाल की एक लघु आकृति भी देखी जा सकती है। पद्मासन तीर्थंकरों की तीन अन्य प्रतिमाएँ (११५, १२१ तथा १२२) उनके लांछनों के अभाव में पहचानी नहीं जा सकती हैं। इन तीनों अचिह्नित तीर्थंकरों की प्रतिमाओं में से प्रथम प्रतिमा ग्वालियर के किले से प्राप्त हुई है और शेष दो प्रतिमाएँ पढावली से । इस काल की दो सर्वतोभद्रिका-प्रतिमाएँ भी यहाँ उपलब्ध हैं । विदिशा से प्राप्त सर्वतोभद्रिका प्रतिमा (१३१, ऊँचाई ८८ सें. मी.) में चारों ओर चार कायोत्सर्ग तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ है जिनमें से दो तीर्थंकरों को ऋषभनाथ एवं पार्श्वनाथ के रूप में पहचाना जा चुका है जबकि शेष दो तीर्थंकर अचिह्नित हैं। दूसरी सर्वतोभद्रिका-प्रतिमा (२६२) भली-भाँति पालिश की हुई है। यह प्रतिमा जैसा कि इसके अभिलेख से ज्ञात होता है भरिल और (संभवतः उसकी पत्नी) कलणा द्वारा निर्मित करायी गयी। यह प्रतिमा किस क्षेत्र से प्राप्त हुई है यह ज्ञात नहीं हो सका है। एक द्वि-मूर्तिका प्रतिमा (३०८; माप १.३५ मी०४४८ सें. मी.) में कायोत्सर्ग-मुद्रा में दो तीर्थंकर दर्शाये गये हैं । यह प्रतिमा कहाँ प्राप्त हुई है यह ज्ञात नहीं है लेकिन इसके लिए तेरहवीं शताब्दी का समय निर्धारित किया जा सकता है। शिवपुरी जिले के अंतर्गत पढावली स्थान से किसी तीर्थकर प्रतिमा के परिकर का एक खण्ड (३४३) प्राप्त हुआ है जो बारहवीं शताब्दी का है। पढावली से ही एक मान-स्तंभ (३४३; ऊँचाई १.५ मी०) प्राप्त हुआ है जिसमें देवकोष्ठों के अंदर तीर्थंकर की लघु प्रतिमाओं को बैठे हुए दर्शाया गया है जिनमें से एक तीर्थंकर को नाग-फण छत्र के कारण पार्श्वनाथ के रूप में पहचाना जा सकता है। इस संग्रहालय में मात्र एक ही देवी-प्रतिमा है जो चक्रेश्वरी (१४६) की है। उत्तर-मध्यकालीन प्रतिमाएँ : उत्तर-मध्यकालीन, ग्वालियर के तोमर वंशीय शासकों के राज्यकालों की लगभग बीस जैन प्रतिमाएँ इस संग्रहालय में संरक्षित हैं जो ग्वालियर के किले में प्राप्त हई हैं। इनमें से कुछ प्रतिमाओं का वास्तविक स्थान ज्ञात नहीं है। 602 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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