Book Title: Jain Kala evam Sthapatya Part 3
Author(s): Lakshmichandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 388
________________ संग्रहालयों में कलाकृतियाँ [ भाग 10 निर्मित एक वृत्ताकार प्लेट पर खड़ी है । यह प्लेट संभवतः उस पादपीठ से संलग्न थी जो लुप्त हो चुका है । कोगली से प्राप्त कुछ अन्य तीर्थंकर-प्रतिमाएँ भी हैं जिन्हें पहचाना नहीं जा सकता तथा ये प्रतिमाएँ अन्य सामान्य प्राकृतियों से भी रहित हैं। रामनाथपुरम् जिले के शिवगंगा नामक स्थान से प्राप्त एक तीर्थंकर-प्रतिमा (ऊँचाई ३६ सें० मी०) में तीर्थंकर को एक सादा परंतु उत्तम रूप से निर्मित उच्च भद्रासन पर अर्ध-पर्यंकासन-मुद्रा में बैठे हुए दर्शाया गया है। आसन के पीछे दो चमरधारी करण्ड-मुकुट पहने त्रि-भंग-मुद्रा में समानुपातिक ढंग से खड़े हुए हैं। तीर्थंकर-प्रतिमा सुगठित है । प्रासन के पीछे किनारे पर सिंह का कला-प्रतीक अंकित है जो आसन को परंपरानुगत रूप से सिंहासन के रूप में दर्शाता है। पादपीठ के दोनों कोनों पर दो सिंह और अंकित हैं जिनके सिरों पर छोटी-छोटी कीलें लगी हुई हैं जो प्रभा को संयुक्त करने के लिए हैं। चमरधारियों के वस्त्राभूषण इस प्रतिमा के लिए उत्तर पाण्ड्य काल की तिथि, लगभग सन् १२०० का संकेत देते हैं। उत्तर आर्काट जिले के तिरुमले से प्राप्त दो सेवकों सहित पद्मासन चंद्रप्रभ की प्रतिमा (८/२७) तथा दक्षिण आर्काट जिले के गिडंगिल से हाल ही में प्राप्त तेरहवीं शताब्दी की ऋषभनाथप्रतिमा भी इस संग्रहालय की उल्लेखनीय प्रतिमाएँ हैं। अंबिका यक्षी प्रतिमा : सिंगनिकुप्पम् से अंबिका यक्षी की एक खण्डित प्रतिमा (३२१/५७ ऊँचाई ८७.७ सें. मी.) प्राप्त हुई है। यक्षी भद्रासन पर आधारित एक सुंदर पद्म के आसन पर आकर्षक त्रि-भंग मुद्रा में खड़ी हुई है। भद्रासन का सम्मुख-भाग प्रक्षिप्त है। यक्षी का बायाँ हाथ त्रि-भंग मुद्रा में खड़ी माला-धारिणी मनोहर चेटी (सेविका) के सिर पर टिका हुआ है। यक्षी के दायीं ओर एक छोटा शिशु खड़ा है । यक्षी चौड़े-चौड़े गलहार, बाजूबंद तथा चूड़ियाँ पहने हुए है। यक्षी के अधोवस्त्र का छोर ढीला है जो लहरा रहा है तथा बगलों में फंदनों से कसा हुआ है। आगे की ओर माला लटक रही है। तीथंकर की एक लघु प्रतिमा करण्ड-मुकुट धारण किये है। यह प्रतिमा लगभग तेरहवीं शताब्दी की है (चित्र ३८४ ख) । राजकीय संग्रहालय, पुडुक्कोट्टै की कांस्य प्रतिमाएँ इस संग्रहालय की समस्त जैन कांस्य-प्रतिमाएँ पुडुक्कोट्टै नगर के कलसक्कडु नामक स्थान से प्राप्त हुई हैं। पार्श्वनाथ की दो प्रतिमाओं (माप २०.३ तथा १० सें० मी०) में से पहली प्रतिमा प्रारंभिक तथा दूसरी उत्तरवर्ती शैली में है। ये दोनों ही प्रतिमाएँ पादपीठ पर नाग-फण छत्र के नीचे कायोत्सर्ग-मद्रा में हैं। महावीर की प्रतिमा (माप १० सें. मी.) पादपीठ पर अर्ध-पर्यकासन-मुद्रा में ध्यानस्थ है। चतुर्विंशति-पट्ट-प्रतिमा (माप ३७ सें० मी०) में मूलनायक ऋषभनाथ पादपीठ पर कायोत्सर्ग-मुद्रा में अंकित हैं। उनके चारों ओर प्रभा-मण्डल है जिसकी परिधि पर तेईस तीर्थकर उत्कीर्ण हैं। के० प्रार० श्रीनिवासन् 618 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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