Book Title: Jain Kala evam Sthapatya Part 3
Author(s): Lakshmichandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 384
________________ संग्रहालयों में कलाकृतियाँ [ भाग 10 देवगढ़ में अधिकतर मतियाँ तीर्थंकरों की हैं; उनमें भी अधिकतर आदिनाथ (चित्र ३८०, क, ख), पार्श्वनाथ (चित्र ३८० ख), नेमिनाथ, सुमतिनाथ और महावीर की हैं। अधिकांश तीर्थंकरमूर्तियाँ शिलापट्टों में उत्कीर्ण की गयी हैं, और उनके अन्य रूप में हैं चतुविंशति-पट्ट, द्वि-मूर्तिका, (चित्र ३७६ ग) और सर्वतोभद्रिका । एक स्तंभ पर तीर्थंकरों की एक सौ छियत्तर मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं, इसके अतिरिक्त एक सहस्रकूट भी है। तीर्थंकर-मूर्तियाँ अनलिखित महत्त्वपूर्ण हैं : (१) सिंहासन पर पद्मासन में आसीन तीर्थंकर जिसके आसन पर दोनों ओर एक-एक सिंह और उनके मध्य एक धर्मचक्र अंकित है। यह अति खण्डित मूर्ति देवगढ़ की तीर्थंकर-मूर्तियों में कदाचित्र प्राचीनतम है और यह गुप्तकाल की मानी जानी चाहिए। यह अब मंदिर-१२ की चहारदीवारी में जड़ी हुई है। (२) एक तीर्थकर (शांतिनाथ) की कायोत्सर्ग-मुद्रा में स्थित मूर्ति के पादपीठ पर बायें सिंह और दायें मृग का अंकन है, जो एक असामान्य विशेषता प्रतीत होती है। चक्रेश्वरी देवी (चित्र ३८० ग) की दो मूर्तियाँ साहू जैन संग्रहालय में प्रदर्शित हैं। इनमें से वह अत्यंत सुंदर कृति है जो पहले मंदिर-१२ के अंतराल में रखी थी। उसमें यह द्वादश-भुजी देवी अपने वाहन गरुड पर आसीन है और उसके एक हाथ में अक्षमाला, एक में शंख और सात में चक्र हैं, शेष हाथ खण्डित हैं, अंबिका की एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण मूर्ति मंदिर-१२ के गर्भगृह के प्रवेश-द्वार पर अंकित है। धरणेद्र-पद्मावती की (किसी समय ये तीर्थंकर के माता-पिता की मानी जाती रहीं) अनेक मूर्तियाँ हैं । ये दो प्रकार की हैं। पहले प्रकार में पद्मावती अपनी गोद में एक बालक को धारण किये हुए है और दूसरे प्रकार में वह अपने पति की बगल में या उसकी गोद में बैठी हुई है। जैन अध्यापक (उपाध्याय) की मति (चित्र ३८१ क) भी एक महत्त्वपूर्ण कृति है जो अब साहू जैन संग्रहालय के पीछे के जैन मंदिर में रखी है। उपाध्याय परमेष्ठी पद्मासनस्थ है और उस पर पाँच पंक्तियों का विक्रम संवत् १३३३ का एक अभिलेख है। साह जैन संग्रहालय में इसी परमेष्ठी की एक अर्ध-पर्यंकासनस्थ मति है। साहू जैन संग्रहालय में प्रदर्शित भरत की कायोत्सर्ग-मूर्ति (चित्र ३८२) भी एक महत्त्वपूर्ण कृति है जिसमें नौ घटों के रूप में नव-निधियाँ अंकित की गयी हैं। प्रारंभिक मूर्तियों में एक बाहुबली (चित्र ३८१ ख) की है जो उस दशा में भी पूर्णतया ध्यानमग्न रहे दिखाये गये हैं जब दो नारियां उनके शरीर पर लिपटी लताओं को हटा रही होती हैं, यह मूर्ति साहू जैन संग्रहालय में प्रदर्शित है। भागचन्द्र जैन 616 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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