Book Title: Jain Kala evam Sthapatya Part 3
Author(s): Lakshmichandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 366
________________ संग्रहालयों में कलाकृतियाँ [ भाग 10 इस खण्ड पर एक साथ अंकित तीन यक्षियों की भी एक प्रतिमा है । इनमें से केंद्रवर्ती यक्षी गरुड पर आरूढ तथा अपने ऊपरी हाथों में चक्र और गदा धारण किये है । यह यक्षी चक्रेश्वरी हो सकती है । यक्षियों के ऊपर केंद्रवर्ती देवकुलिका में एक पद्मासन तीर्थंकर हैं जिनके पार्श्व की लघु देवकुलिकाओं में तीर्थंकर स्थापित हैं। केंद्रवर्ती देवकुलिका के पार्श्व में उड़ते हुए माला धारी अंकित हैं । तीसरे खण्ड (५१) में एक लघु देवालय के मध्यवर्ती देवकोष्ठ में एक तीर्थंकर पद्मासन मुद्रा में बैठे हुए दिखाये गये हैं । इसके स्तंभों की पंक्तियाँ गज-शार्दूल के कला-प्रतीकों से अलंकृत हैं । इसपर आमलक-युक्त कई सतहों वाला शिखर मण्डित है, जिसपर कलश नहीं है । इस लघु देवालय के पार्श्व में दोनों ओर मकर का कला प्रतीक अंकित है । ऐसे ही दो खण्ड (२१० तथा २३५ ) और हैं जिनमें लघु देवालय अंकित हैं । पहले खण्ड की देवकुलिका में पद्मासन तीर्थंकर को दिखाया गया है और दूसरे खण्ड की देवकुलिका में एक प्रष्ठभुजी यक्षी को अपने वाहन वृषभ पर बैठे हुए दिखाया गया है । यक्षी वाले खण्ड का शिखर अत्यंत अलंकृत है । खण्डित प्रतिमाओं के पादपीठ भी इनपर 1 आधारित तीर्थंकर प्रतिमानों के लांछनों के अंकित होने के कारण कलात्मक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं । एक स्तंभ : इस संग्रहालय में एक स्तंभ का खण्ड (६१) भी संरक्षित है । इस स्तंभ पर तीर्थंकरों की प्रतिमाओं के अतिरिक्त एक आचार्य और एक साध्वी की प्रतिमा भी अंकित है । इस स्तंभ पर उत्कीर्ण संवत् १५१७ अथवा शक संवत् १३५२ के अभिलेख के अनुसार, यह प्रतिमा जिसके समीप ही कमण्डलु और पिच्छिका अंकित है प्राचार्य प्रतापचंद्र की है जो काष्ठा-संघ के माथुर-अन्वय के आचार्यं क्षेमकीर्ति के शिष्य थे । कमण्डलु और पिच्छिका सहित पद्मासन मुद्रा में प्रदर्शित साध्वी, अभिलेख के अनुसार, आर्यिका संयमश्री हो सकती है । जयसिंहपुरा जैन पुरातत्त्व संग्रहालय, उज्जैन इस संग्रहालय में मालवा क्षेत्र के विभिन्न स्थानों से प्राप्त पाँच सौ से अधिक जैन प्रतिमाएँ संरक्षित हैं। इनमें से छियानबे प्रतिमाओं पर अभिलेख अंकित हैं । इन प्रतिमाओं में तीर्थंकरों, जैनदेवियों, सर्वतोभद्रिका तथा चौमुख प्रतिमाएँ हैं। सबसे अधिक, चौंसठ प्रतिमाएं, मात्र पार्श्वनाथ की हैं । इसके अतिरिक्त ऋषभनाथ की सैंतीस, चंद्रप्रभ की बीस, अजितनाथ की बारह तथा अन्य तीर्थंकरों की भी अनेकानेक प्रतिमाएं हैं । बालचंद्र जैन अभिलेखांकित प्रतिमाओं में से निम्नलिखित उल्लेखनीय हैं : धार से प्राप्त ॠषभनाथ की एक प्रतिमा (३०) पर विक्रम संवत् १६२६ का अभिलेख अंकित है । जवास से प्राप्त ॠषभनाथ की संगमरमर से निर्मित दो प्रतिमाएँ ( ४७ और ५० ) संवत् १४१६ की; नागदा (देवास) से प्राप्त काले पत्थर की एक प्रतिमा (७१) संवत् १२२२ की है। अभिनंदननाथ की एक प्रतिमा ( १७६ ) 606 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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