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संग्रहालयों में कलाकृतियाँ
[ भाग 10
पार्श्वनाथ की एक अन्य उत्कृष्ट प्रतिमा (चित्र ३२१ ख) में, जो किसी समय विदिशा जिले में ग्यारसपुर के एक जैन मंदिर में प्रतिष्ठित थी, तीर्थकर को सिंहासन पर पद्मासन-मुद्रा में दर्शाया गया है, उनके पार्श्व में दोनों ओर चमरधारी सेवक हैं। इस प्रतिमा में अंकित एक असामान्य विशेषता यह है कि मेघ-कुमार (बादलों के राजकुमार)द्वारा प्रचण्ड झंझावात सहित आक्रमण के समय तीर्थंकर को धातकी वृक्ष के नीचे बैठे हुए 'अातापन योग' की उग्र साधना करते हुए दर्शाया गया है। प्रतिमा में सर्पराज धरणेंद्र को तीर्थंकर के शीर्ष पर अपने सत-फणी छत्र द्वारा छाया करते हुए तथा उसकी रानी नागी पद्मावती को उनके ऊपर श्वेत रंग का छत्र ताने हुए अंकित किया गया है। नाग-छत्र के पार्श्व में दोनों प्रोर आकाश में उड़ते हुए पुष्पमालाधारी गंधर्वो का तथा उनके ऊपर नगाड़े बजाते हुए हाथों का अंकन है जो झंझावात की गर्जन-ध्वनि को प्रदर्शित करता है। पादपीठ के सम्मुख-भाग पर एक बौनी मानव-आकृति को हाथों में चक्र धारण किये हुए अंकित किया गया है। प्रतिमा में आकर्षक विधि से पूर्व प्रचलित गुप्त शैली की परंपरा का निर्वाह परिलक्षित होता है जो संकेत देता है कि इस प्रतिमा का रचनाकाल सातवीं शताब्दी रहा है। बिहार से उपलब्ध एक दूसरी समसामयिक, प्रायः इसी प्रकार की प्रतिमा, जिसमें तीर्थंकर को कायोत्सर्ग-मुद्रा में दिखाया गया है, इस समय कलकत्ता के इण्डियन म्यूजियम में देखी जा सकती है।।
चौलुक्यकालीन पश्चिम-भारत की धातु-प्रतिमाओं की लोकप्रियता का उल्लेख पहले किया जा चुका है। एक त्रि-तीथिका में एक तीर्थंकर को आसन पर ध्यान-मुद्रा बैठे हुए दिखाया गया है । इन तीर्थंकर को पहचाना नहीं जा सका है। तीर्थंकर के पार्श्व में एक अोर कायोत्सर्ग-मुद्रा में एक तीर्थकर तथा दूसरी ओर चमरधारी सेवक खड़े हैं (चित्र ३२२) । खड़े हुए तीर्थंकर के केश धुंघराले हैं तथा वे पट्टियों के रूप में सुव्यस्थित हैं। दोनों तीर्थंकरों के श्रीवत्स-चिह्न और आँखें उसी प्रकार चाँदी निर्मित और पच्चीकारी द्वारा लगायी गयी हैं जिस प्रकार इस काल की अधिकांशतः कांस्यतीर्थकर-प्रतिमाओं में पायी जाती हैं। चौड़ा चेहरा, सुपुष्ट ठोढ़ी तथा सेवकों एवं यक्ष-यक्षियों के करण्ड-मुकुटों से संकेत मिलता है कि यह प्रतिमा लगभग दसवीं शताब्दी के परमारकालीन मूर्तिकार की रचना है। यक्ष और यक्षी द्वारा भुजाओं में धारण किये हुए अपने विशेष उपादानों से ज्ञात होता है कि वे गोमेध और अंबिका हैं जो तीर्थंकर नेमिनाथ के शासन-देवता हैं। तीर्थंकर नेमिनाथ का लांछन शंख इस प्रतिमा पर अंकित नहीं है।
चाहमान-कला की एक सर्वोत्तम कृति तीर्थंकर शांतिनाथ की कांस्य-प्रतिमा है जो संभवतः राजस्थान से संबंधित है। इस आकर्षक प्रतिमा में तीर्थंकर को ध्यान-मुद्रा में प्रासन पर बैठे हुए दर्शाया गया है (देखिए इसी भाग का सम्मुख-चित्र)। तीर्थकर के घुघराले छल्लेदार केश योजनावत् ढंग से व्यवस्थित हैं। उनके वक्ष पर सुस्पष्ट श्रीवत्स-चिह्न है जो राजस्थान में पिलानी के निकट नरहद नामक स्थान से पायी गयीं नेमिनाथ और मनि सुव्रतनाथ दो तीर्थंकरों की प्रतिमाओं के श्रीवत्स
1 भट्टाचार्य, पूर्वोस्त, चित्र 28.
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