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संग्रहालयों में कलाकृतियाँ
[ भाग 10 प्रारंभिक प्रतिमा की भांति इस प्रतिमा में भी तीर्थंकर के पावं में दोनों और चमरधारी सेवक तथा उनका यक्ष धरणेंद्र और यक्षी पद्मावती अंकित हैं। उनके घुघराली केशावलियों को उत्तम प्रकार से प्रसाधित किया गया है। उनके पीछे एक अलंकृत चौखटा ऊपर की ओर उठे हुए गोलाकार दो स्तंभों पर आधारित है । इन स्तंभों पर पुष्पलता-वल्लरियों की अभिकल्पनाओं से युक्त मकर-मुख अंकित हैं जो अपने मुख से अलंकृत पट्ट तथा बाह्य परिधि पर अग्नि की ज्वालाएं निकाल रहे हैं। प्रतिमा के पृष्ठभाग पर दसवीं-ग्यारहवीं शताब्दी की कन्नड़ लिपि में एक अभिलेख उत्कीर्ण है।
सरस्वती की एक सुंदर प्रतिमा में, जो संभवतः कर्नाटक-क्षेत्र से उपलब्ध हुई है, देवी को एक कमनीय मुद्रा में खड़े हुए दर्शाया गया है जिसमें उसके शरीर का समस्त भार दायीं ओर के पैर पर है और बायाँ पैर आगे की ओर बढ़ा हुआ, घुटने से मुड़ा हुआ है (चित्र ३१६ ख)। उसकी दायीं भुजा में एक पद्मपुष्प की कली है तथा बायीं भुजा में एक पुस्तक है। वह नीचे की ओर देखती अपने उपासकों को ज्ञान-दान करने की मुद्रा में अंकित है। उसके ऊपरी भाग में एक छोटी-सी तीर्थकर-प्रतिमा ध्यान-मुद्रा में प्रदर्शित है। यह अभिलेख-युक्त प्रतिमा हमें इसी क्षेत्र से प्राप्त समकालीन अंबिका की एक प्रतिमा का स्मरण कराती है जो इस समय लॉस एंजिल्स के काउण्टी म्यूजियम प्रॉफ पार्ट में प्रदर्शित हैं। यह प्रतिमा लगभग दसवीं-ग्यारहवीं शताब्दी की है।
इन प्रतिमाओं के अतिरिक्त ब्रिटिश म्यूजियम के इण्डियन सेक्शन (भारतीय विभाग) में कुछ लघु आकार की जैन कांस्य-प्रतिमाएँ भी हैं। ये प्रतिमाएँ मुख्यतः दक्षिणापथ की हैं जिनमें से कायोत्सर्ग-तीर्थंकर की एक दिगंबर प्रतिमा कला की प्रत्युत्तम कृति है। यद्यपि तीर्थंकर की बायीं भजा खण्डित हो चुकी है तथापि, इसकी उच्च श्रेणी की चमकदार पालिश उसे लगभग ग्यारहवीं शताब्दी की एक उत्कृष्ट कलाकृति के रूप में विशिष्ट स्थान दिलाती है । एक अन्य प्रतिमा में तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ को एक ऊँचे सिंहासन पर पंच-फणी सर्प के फण-छत्र के नीचे बैठे हुए दर्शाया गया है। यक्ष मातंग ओर यक्षी शांता को पादपीठ पर सम्मुख की ओर बैठे हुए अंकित किया गया है, पादपीठ पर एक पंक्ति में आठ नक्षत्रों को मानवीकृत रूप में खड़े दर्शाया गया है। इस प्रतिमा की तिथि दसवीं-ग्यारहवीं शताब्दी निर्धारित की जा सकती है।
दक्षिणापथ की अन्य जैन प्रतिमाओं में एक और सर्वाधिक उल्लेखनीय कांस्य-प्रतिमा है जिसमें एक दंपति को दर्शाया गया है जो संभवतः तीर्थंकर के माता-पिता हैं। यह दंपति पादपीठ पर खड़ा हुआ है। पादपीठ के आधार पर पाठ दिगंबर प्राकृतियाँ अंकित हैं। पुरुषाकृति के दायें हाथ में पद्म-पुष्प और बायें हाथ में नीबू फल है। इसी प्रकार नारी-प्राकृति के दायें हाथ में पदम और बायें हाथ में फल अंकित हैं। दोनों प्राकृतियाँ समसामयिक वस्त्राभूषणों से अलंकृत हैं। लगभग बारहवीं शताब्दी की
1 पाल (पी). द सेक्रेड एण्ड सेक्यूलर इन इण्डियन आर्ट. 1974. लॉस ऐंजिल्स. चित्र 26. 2 शाह (उमाकांत प्रेमानंद). स्टीज इन जैन पार्ट. 1955. बनारस, चित्र 17. रेखाचित्र 45 से तुलना कोजिए.
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