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संग्रहालयों में कलाकृतियाँ
[ भाग 10
से अलंकृत है । इस प्रतिमा के परिकर में अनेक छोटी-छोटी आकृतियाँ अंकित हैं । भामण्डल के ऊपरी भाग में तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ हैं जिन्हें पालिश किये बिना ही छोड़ दिया गया है जबकि सरस्वती की प्रतिमा पर भली-भाँति पालिश की गयी है। प्रतिमा पर देवनागरी लिपि में १९७८ (बारहवीं शताब्दी) का अभिलेख अंकित है । पाटनचेरुवु से एक शिखरयुक्त चौमुख प्रतिमा भी प्राप्त हुई है ।
निजामाबाद जैन धर्म का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र रहा है जहाँ से पार्श्वनाथ की एक प्रतिमा प्राप्त हुई है जिसमें महापुरुषों के समस्त लक्षण हैं । इस स्थान से अन्य अनेक प्रतिमाएँ भी प्राप्त हुई हैं।
गुलबर्गा जैन धर्म का एक अन्य उल्लेखनीय केंद्र रहा है जहाँ से इस संग्रहालय को पार्श्वनाथ की एक कायोत्सर्ग प्रतिमा प्राप्त हुई है । पार्श्वनाथ के शीर्ष पर पाँच फणी नाग छत्र तथा उसके ऊपर तिहरा छत्र है और तीर्थंकर के पार्श्व में चमरधारियों की प्रतिमाएँ हैं । इस प्रतिमा पर अंकित अभिलेख में इसे पार्श्वनाथ (पार्श्व देव ) की प्रतिमा बताया गया है । लिपिशास्त्र के आधार पर इस प्रतिमा का काल बारहवीं शताब्दी निर्धारित किया जा सकता है ।
धर्मवरम्, जहाँ पर एक जैन मंदिर रहा था, से अनेक जैन प्रतिमाएँ पायी गयी हैं । यहाँ से प्राप्त एक चौमुख प्रतिमा इस संग्रहालय में संरक्षित है । इस चौमुख प्रतिमा के चारों मुखों में से प्रत्येक मुख तीन फलकों में विभाजित है और प्रत्येक फलक में दो-दो तीर्थंकर अंकित हैं । इस प्रकार तीर्थंकरों की कुल संख्या चौबीस है अतः यह एक प्रकार से चतुर्विंशति - पट्ट ( चित्र ३६१ क ) है । ये प्रतिमाएं कम उभारदार उद्धृत हैं । इस प्रतिमा पर अभिलेख भी उत्कीर्ण है जो प्रत्यंत धूमिल पड़ चुका है ।
कुछ आकर्षक जैन प्रतिमाएं पुरातत्त्व एवं संग्रहालयों के निदेशक के कार्यालय परिसर में भी प्रदर्शित हैं जिनमें पार्श्वनाथ की प्रतिमा उल्लेखनीय है । यह प्रतिमा ६२ सें० मी० ऊँची है जिसमें तीर्थंकर कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़े हैं और उनके पीछे कुण्डलित नाग है जो अपने सप्त फणी नाग - छत्र से उनके ऊपर छाया कर रहा है । नाग छत्र के ऊपर एक तिहरा छत्र है । इस प्रतिमा के चौखटे पर तेईस तीर्थंकर योगमुद्रा में अंकित हैं । पार्श्वनाथ के पैरों के पास पार्श्व में एक ओर पुरुष और दूसरी ओर महिला चमरधारी सेवक हैं; तथा दो अन्य चमरधारी पुरुष सेवक तीर्थंकर के कंधों के समीप उत्कीर्ण मकरों पर खड़े हुए हैं ।
लगभग ७० सें० मी०ऊँची चंद्रप्रभ की प्रतिमा में तीर्थंकर को पद्मासन - मुद्रा में बैठे हुए दर्शाया गया है। जिनके हाथ योग मुद्रा में हैं । उनके बाल छोटे-छोटे छल्लों में प्रसाधित हैं तथा कर्णाग्र लंबे हैं । पादपीठ के मध्य में चंद्रमा अंकित है । प्रतिमा पर तेलुगु - कन्नड़ लिपि में उत्कीर्ण अभिलेख के आधार पर इस प्रतिमा के लिए ग्यारहवीं शताब्दी का समय निर्धारित किया जा सकता है ।
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