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चित्रांकन एवं काष्ठ-शिल्प
[ भाग 7 की जानकारी हमें मात्र उसके एक पूनर्मद्रित चित्र से ही प्राप्त होती है लेकिन इस समय यह पाण्डुलिपि भी विलुप्त हो चुकी है । यह पाण्डुलिपि सोने की स्याही से लिखी गयी थी और इसके चित्र में भट्टारक विद्यानंदी को उनके अनुयायियों सहित चित्रित किया गया था। भट्टारक को नायक के शारीरिक अनुपात में, एक घुमावदार पीठ-युक्त चौकी पर आसीन मुद्रा में दर्शाया गया है। इनके सम्मुख तीन कतारों में बैठे हुए उपासक, उपासिकाएँ तथा साध्वियाँ चित्रित हैं। भट्टारक के शीर्ष के ऊपर छतरी की तरह की संरचना है जो परस्पर-संयुक्त अष्टदल के पुष्पों की रूप-रेखा वाली है। उपासकों के ऊपर झिरीदार वेदिकाएँ हैं जिनके फलक जालीदार हैं।
चित्र-संयोजन के सिद्धांतों, मानव-आकृतियों के अंकनों, उनकी मुद्राओं, वेश-भूषाओं तथा स्थापत्य एवं आंतरिक साज-सज्जा के उपादानों, उपस्कर आदि की दृष्टि से यह चित्र अपने समसामयिक पश्चिम-भारत में रचे गये अन्य चित्रों से भिन्न नहीं है।
इसी क्षेत्र में चित्रित दिगंबर पाण्डुलिपियों में एकमात्र अन्य पाण्डुलिपि और है जिसे ' पश्चिम-भारत की प्रचलित 'समृद्ध शैली' में चित्रित माना जा सकता है। यह पाण्डुलिपि लाल, बैंगनी, काले अथवा श्वेत रंग से रंगे कागजों पर सुनहरी स्याही से लिखी गयी है (रंगीन चित्र ३० क)। यह भट्टारक सोमकीर्ति द्वारा संस्कृत में लिखे गये यशोधर-चरित की पाण्डुलिपि है जिसे जसहर-चरिउ के नाम से भी जाना जाता है। इसके उनतीस चित्र लगभग एक ही आकार के हैं जो पृष्ठ की दायीं अथवा बायीं ओर अंकित हैं। दो चित्र समूचे पृष्ठ पर भी बने हुए हैं (रंगीन चित्र ३० ख; चित्र २७६ क) । प्रत्येक पृष्ठ के चारों किनारों पर तथा मध्य में अलंकृत सज्जा-पट्टियाँ हैं।
चित्र या तो समूचे चित्र-फलक पर अंकित हैं या फिर प्रांशिक पंक्ति-चित्रों में। जिन रंगों का उपयोग किया गया है वे लाल रंग के साथ नीले और सुनहले जैसे बहुमूल्य रंगों के सम्मिश्रण से तैयार किये गये हैं। रंगीय रेखाओं की तकनीक की परंपरा जो इन चित्रों में प्रयुक्त की गयी है उससे मानव-आकृति के रूपांकन का निर्धारण होता है । ये प्राकृतियाँ कोणीय हैं तथा इन्हें अतिशयतापूर्ण मुद्राओं एवं भावाभिव्यक्तियों के साथ अंकित किया गया है । मानव-प्राकृतियों में विस्फारित आँखों का अंकन है। पुरुषों को धोती पहने, वक्षस्थल पर उत्तरीय ओढ़े हुए और पगड़ी पहने हुए दर्शाया गया है तथा महिलाओं को धोती, लंबी बाँहों की चोली, सिर को ढके हुए ओढ़नी डाले हुए दर्शाया गया है।
ओढ़नी के स्थान पर कहीं-कहीं उन्हें पगड़ी पहने हुए भी चित्रित किया गया है। नारी-वस्त्रों पर ज्यामितीय आकार, हंसों की पंक्तियाँ अथवा अरब प्रभावाधीन पत्र-पुष्पों की रूपरेखांकित अभिकल्पनाएँ
देखिए रंगीन चित्र 25 क, ख, ग, घ; मोतीचंद्र, पूर्वोक्त, 1949. रेखाचित्र 89, 90, 149, 150./ शाह (उ. प्रे.). स्टोरी प्रॉफ़ कालक. 1949. अहमदाबाद. रेखाचित्र 22, 32, 43, 64, 66./ब्राउन. मिनिएचर पेंटिंग फ्रॉम द जैन कल्प-सूत्र. 1934. वाशिंगटन, रेखाचित्र 7, 46, 48. / ब्राउन. मैन्युस्क्रिप्ट इलेस्ट्रेशन्स ऑफ़ दि उत्तराध्ययन सूत्र. 1941. कोनेक्टीकट. रेखाचित्र 32, 51, 149.
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