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अध्याय 34]
दक्षिण भारतीय मुद्राओं पर अंकित प्रतीक पृष्ठभाग : कन्नड़ में तीन पंक्तियों का लेख-(१) श्री-नो-(२) नम्बवाडी-(३) गण्ड ।
अबतक यह माना जाता रहा कि इस मुद्रा के अग्रभाग पर अंकित आकृति चामुण्डा की है, किन्तु सूक्ष्म परीक्षण के पश्चात् सिद्ध हुआ कि यह प्राकृति और उसके आयुध अंबिका के हैं। दिगंबर परंपरा में यह देवी धर्मादेवी के नाम से भी उल्लिखित है और कूष्माण्डिनी (तीर्थंकर नेमिनाथ की यक्षी) के रूप में प्रसिद्ध है, इस मुद्रा में उसके बायें जो एक लघु आकृति है वह निश्चित रूप से उसके शिशु की है । जो सिंह अंकित है वह उसका वाहन है। दक्षिण भारतीय जैन कला में यक्षी अंबिका अत्यंत लोकप्रिय है और दुर्गा से उसकी अत्यधिक समानता अकारण नहीं हो सकती।
दक्षिण भारत की जैन प्रभाव सहित मुद्राओं का उपर्युक्त सर्वेक्षण किसी भी दृष्टि से पर्याप्त नहीं है । इसके अतिरिक्त, इससे यह परिज्ञान होता है कि मुद्राओं के अध्ययन में जैन स्रोतों के उपयोग की कितनी अधिक संभावनाएं हैं। इससे एक लाभ और होगा कि जिन ऐतिहासिक संदर्भो में इन मुद्राओं का प्रसार किया गया उन्हें और भी अधिक स्पष्टता से समझा जा सकेगा।
यहाँ जिनके चित्र दिये गये हैं उन पाण्ड्य मुद्राओं का विवरण निम्नलिखित है : (१) अग्रभाग : दाहिनी ओर अश्व, अश्व के सम्मुख मुक्कुडे (छत्रत्रय), अश्व के ऊपर
मण्डलावृत वृक्ष का प्रतीक जिसके अब कुछ चिह्न ही दिखते हैं। दायें
कोण पर तीन तोरणों-सहित एक चैत्य । पृष्ठभाग : रेखा-कोण--मीन ।
चित्र ३०५,१ । (२) अग्रभाग : दाहिनी ओर अश्व, उसके सम्मुख छत्रत्रय । अश्व के ऊपर मण्डलावृत वृक्ष
का प्रतीक । पृष्ठभाग : 'मीन' के अंकन के चिह्न।
चित्र ३०५,२। (३) अग्रभाग : दाहिनी ओर गज, उसके सम्मुख एक दीपक । ऊपर सात प्रतीक ।
मण्डलावृत वृक्ष, नंदिपद (बैल का खुर), कुंभ (कलश), अर्धचंद्र,
श्रीवत्स, दर्पण और चक्र। पृष्ठभाग : रेखा-कोण--मीन।
चित्र ३०५,३ । (४) अग्रभाग : दाहिनी ओर गज और उसके सम्मुख दीपक और अंकुश। ऊपर दिखते
छह प्रतीक-नंदिपद, कुंभ, अर्धचंद्र, श्रीवत्स, दर्पण और चक्र ।
1 द्रष्टव्यः रामचंद्रन्, वही, पृ 209, इस यक्षी की मूर्तियों के मूर्तिशास्त्रीय लक्षणों के लिए.
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