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अध्याय 31]
लघुचित्र इन चित्रों की बाह्य रेखाएं काले रंग में हैं तथा ये चित्र लाल रंग की पृष्ठभूमि पर श्वेत, पीले और नीले रंग से अंकित हैं। यद्यपि इन चित्रों में लाक्षणिक कोणीयता तथा विस्फारित नेत्रों के चित्रांकन में पश्चिम-भारतीय अथवा गुजराती चित्र-शैली का निर्वाह हा है, तथापि इनमें एक निजी वैशिष्ट्य परक, दक्षिण-भारतीय गुण पाया जाता है।
इन तीनों पाण्डुलिपियों में से मात्र षट्-खण्डागम की पाण्डुलिपि ही तिथि-युक्त है। यह तिथि सन् १११२ है । अन्य दोनों पाण्डुलिपियाँ भी अनुमानतः इसी काल के लगभग, सन् १११२ से ११२० की मध्यावधि में रची गयी होंगी। इनके रचनाकाल का समर्थन इन तीनों पाण्डुलिपियों की निकटतम समरूपता से होता है। यह समरूपता इनकी विषय-वस्तु और चित्रण-शैली में देखी जा सकती है। इन चित्रों की रेखायुक्त तकनीक, उनकी सीमित रंग-योजना तथा चित्रों की सीमित संख्या इस तथ्य का उद्घाटन करती हैं कि इन चित्रों में उन शैलीगत प्रवृत्तियों का उपयोग हुआ है जो इस समय प्रचलन में थीं। इस काल के रचे गये पाण्डुलिपि-चित्रों से इन चित्रों की समरूपता के लिए मानवआकृतियों के अंकन को रेखांकित किया जा सकता है। मानव-श्रकृति के अंकन में प्राकार की सुडौलगठन को रंग-प्रच्छालन और उनपर अंकित बाह्य रेखाओं द्वारा प्रदर्शित किया गया है। इन चित्रों में देवी-देवताओं के मूर्तिपरक चित्रांकन उसी समान उद्देश्य की पूर्ति करते हैं जिसकी पाल कला में तारा के चित्र अथवा श्वेतांबर जैन पाण्डुलिपियों में विद्यादेवियों के चित्र करते हैं। इन दिगंबर देवीदेवताओं के चित्रों का उद्देश्य चमत्कारपूर्ण है तथा उनके मूल्य सौंदर्यात्मक होने की अपेक्षा रहस्यात्मक हैं।
इन चित्रों का एक रोचक पक्ष यह है कि ये चित्र उसी रूप-रेखा पर आधारित हैं जो अन्य समकालीन सचित्र पाण्डुलिपियों के चित्रों में पायी जाती है। इसके साथ ही इन चित्रों में उन क्षेत्रीय विशेषताओं ने भी स्थान पाया है जिनका हम पहले उल्लेख कर चुके हैं। ये चित्र नारीआकृतियों के चित्रांकन तथा हंसों की लहरदार पुच्छ के अलंकारिक चित्रण में समसामयिक होयसल प्रतिमाओं से अपना एक सीधा संबंध भी प्रदर्शित करते हैं।'
कागज-काल
पश्चिम-भारत
गुजरात में सन् १४५० के पूर्व की चित्रित दिगंबर पाण्डुलिपियों में से कोई भी पाण्डुलिपि आज प्राप्य नहीं है--ऐसा प्रतीत होता है । सन् १४६६ की तिथि-युक्त तत्त्वार्थ-सूत्र की पाण्डुलिपि
1 बैरेट (डगलस) एवं ग्रे (बेसिल). पेण्टिग ऑफ़ इण्डिया. 1963. क्लीवलैण्ड. पू 55./मोतीचंद्र, पूर्वोक्त, 1949,
पृ 28-32. /नॉमन ब्राउन (डब्ल्यू). द स्टोरी ऑफ़ कालक. 1934. वाशिंगटन. पृ 13-20. 2 मोतीचंद्र. स्टडीज इन अली इण्डियन पेंटिंग. 1974. बंबई. 40. 3 दोशी (सरयू), पूर्वोक्त, रेखाचित्र 29 क तथा 29 ख. 4 कपाडिया (एम). सूरत और सूरत जिला दिगंबर जैन मंदिर मूति-लेख-संग्रह, 152 के सामने का चित्र.
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